अवैध खनिज परिवहन पर कार्रवाई, पर वाहन मालिकों के नाम गायब?
कार्यवाही के बाद नहीं करते वाहन मालिकों का उजागर सवालों के घेरे में प्रशासनिक कार्यवाही
पंचायत दिशा समाचार
छिंदवाड़ा /पांढुर्णा –लंबे समय के अंतराल के बाद, जिला कलेक्टर अजय देव शर्मा और खनि अधिकारी रविंद्र परमार के निदेर्शानुसार खनिज विभाग ने क्षेत्र में गिट्टी खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन और भंडारण के खिलाफ सोमवार को कार्रवाई की। इस दौरान ग्राम बनगांव और हेटी मार्ग पर खनिज गिट्टी के अवैध ओवरलोड परिवहन करते हुए चार डंपर (एमएच 27 डीटी 2385, एमएच 27 बीएक्स 9036, एमएच 29 बीडी 1613 और एमएच 37 टी 1013) पकड़े गए। कार्रवाई की जानकारी जिला कलेक्टर कार्यालय द्वारा प्रेस नोट के माध्यम से जारी की गई, लेकिन जिन वाहन मालिकों पर यह कार्रवाई हुई, उनके नाम गायब थे।
वाहन मालिकों के नाम छुपाने का उद्देश्य ?
वाहन मालिकों के नाम छुपाने का उद्देश्य ?
इस कार्रवाई के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर वाहन मालिकों के नाम क्यों नहीं उजागर किए गए? खनिज विभाग द्वारा केवल वाहनों के नंबर इस घटना ने प्रशासनिक पारदर्शिता की गंभीर कमी को उजागर किया है। खनिज विभाग को न न केवल 66 कार्रवाई में पारदर्शिता दिखानी चाहिए बल्कि वाहन मालिकों के नाम भी सार्वजनिक करने चाहिए ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकें और जनता का भरोसा बहाल हो सके। समाज और प्रशासन के बीच विश्वास का पुल तभी मजबूत होगा जब पारदर्शिता और निष्पक्षता प्राथमिकता बनेग
पहले से उठ रहे सवाल और खनिज विभाग की कार्यशैली
पांढुर्णा जिले में रेत, गिट्टी खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन और भंडारण पर कार्रवाई को लेकर लंबे समय से खनिज विभाग पर सवाल उठते रहे हैं। विभाग की अनियमितता और पारदर्शिता की कमी ने इस विषय को और भी अधिक चर्चित बना दिया है।
जांच की आवश्यकता
इस मामले में यह जानने की आवश्यकता है कि वाहन मालिकों के नाम छुपाने के पीछे प्रशासन का क्या उद्देश्य है। क्या यह किसी प्रकार की मिलीभगत का परिणाम है, या फिर यह महज लापरवाही का मामला है.?
कार्रवाई की स्थिति और सवालों के घेरे में प्रशासन
खनिज विभाग की यह कार्रवाई स्थानीय थाना पांढुर्णा की अभिरक्षा में रखे गए डंपरों के साथ आगे बढ़ाई गई। विभाग ने खनिज नियमाधीन प्रावधानों के तहत वाहनों पर प्रकरण दर्ज कर जुमार्ना राशि तय करने के लिए मामला कलेक्टर न्यायालय भेजने की प्रक्रिया शुरू की है। हालांकि, इस कार्रवाई के बावजूद, वाहन मालिकों के नाम छुपाने से लोगों में असंतोष और शंका बढ़ रही है।
जारी करना और मालिकों के नाम छुपाना प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े करता है। अवैध उत्खनन और परिवहन जैसे गंभीर मुद्दों पर पारदर्शिता की कमी से प्रशासन की निष्पक्षता पर संदेह पैदा होता है।