आज मनाया जा रहा है पोला पर्व, कई राज्यों में पोला पर्व की धूम…
छिंदंवाडा -आज मनाया जा रहा है पोला पर्व, छत्तीसगढ़ के अलावा इन राज्यों में मचती है धूम
देश में कई व्रत और त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं इसमें ही आज सोमवार को पोला पर्व मनाया जा रहा है तो छत्तीसगढ़ में विशेष महत्व रखता है। इसके अलावा यह पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक आदि में बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन किसान और आमजन बैलों को भगवान रूप में मानकर पूजा करते हैं।
जानिए क्या होता हैं पोला पर्व …
आपको बताते चलें कि, पोला पर्व भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाएगा। यह पर्व विशेष रूप से किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए समर्पित है, जिसमें उनके सबसे महत्वपूर्ण साथी, बैलों की पूजा की जाती है। बताया जाता हैं कि, छत्तीसगढ़ या फिर भारत के जितने भी कृषि प्रधान गांव हैं उनके लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है। गाय बछड़े की पूजा होने के साथ ही बैलों को सजाया जाता है। इस खास व्रत पर मिठाई खुरमी और नमकीन ठेठरी का पोला पर्व में बनाया जाना खास होता है।
किसान के बेटे माने जाते हैं बैल….
आपको बताते चलें कि, पोला पर्व के मौके पर पोला पर्व पर किसान बैलों की खास तौर से पूजा करते हैं। बैल किसान के बेटे की तरह होते है। खेती किसानी में बैलों का सबसे अहम काम होता है। पोला पर्व पर किसान बैलों की पूजा कर उनके प्रति सम्मान जताते है। गाय और बैलों को लक्ष्मी जी के रूप में देखा जाता है और इसे पूजनीय माना गया है। पोला पर्व में बैलों की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है, जिनके पास बैल नहीं होते हैं, वह मिट्टी के बैलों की पूजा आराधना करके चंदन टीका लगाकर उन्हें माला पहनाते हैं।..।
इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। पर्व के दो-तीन दिन पूर्व से ही बाजारों में लकड़ी तथा मिट्टी के बैल जोड़ियों में बिकते दिखाई देते हैं।
पोला नाम क्यों पड़ा…
विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आए थे, तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा।