पांढुर्ना में कल खेला जाएगा खूनी खेल…..
पूरी दुनिया में प्रसिद्ध पत्थर मारने का खेल
पूरी दुनिया में प्रसिद्ध गोटमार मेले में एक दूसरे पर पत्थर मारने का बहशी खेल कल खेला जाएगा.।।
छिन्दवाड़ा/ पांढुर्ना- मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 100 किमी दूरी पर पांढुर्णा जिला में सैकड़ों वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुरूप पोला त्यौहार के दूसरे दिन मनाया जाने वाला विश्व विख्यात गोटमार मेला मनाया जा रहा। इस अद्भुत गोटमार मेले के बारे में कोई इतिहास संबंधी विवरण तो उपलब्ध नहीं है। मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों की इस क्षेत्र में बहुलता है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है, वाकई इस मेले में पत्थरबाजी की जाती है।
इसमें हजारों लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक विपक्षी योद्धाओं पर पत्थर रूपी शस्त्रों की बौछार कर बड़ी शान से एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस एक दिवसीय अघोषित युद्ध में प्रति वर्ष अनगिनत लोग घायल हो जाते हैं, तो कई अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। इस मेले को घातक बताकर कई लोगों ने इसे बंद करने की कोशिशें भी की, पर जगत जननी माँ चंडिका के भक्तों द्वारा इस मेले को बंद कराने में कई बाधाओं के आने पर भी अनवरत परंपरागत ढंग से इस मेले को संपन्न कराने की परिपाटी चली आ रही है। मेले में भाग लेने के लिए समीपवर्ती महाराष्ट्र प्रांत सहित प्रदेश के अनेक जिलों से लोग यहाँ हर वर्ष आते हैं।प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी विश्व प्रसिद्ध अनोखा गोटमार मेला कृषकों के पोला त्यौहार के दूसरे दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । मेले के आयोजन के संबंध में कई किवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार अति प्राचीन काल में पांढुर्णा नगर का एक युवक पड़ोसी ग्राम सावरगाँव की एक युवती पर मोहित हो गया लेकिन इन दोनों के प्रेम प्रसंग को विवाह बंधन में बदलने के लिए कन्या पक्ष के लोग राजी नहीं हुए। युवक ने अपनी प्रेमिका को अपना जीवन साथी बनाने के लिए सावरगाँव से भगाकर पांढुर्णा लाने का प्रयत्न किया, लेकिन रास्ते में स्थित जाम नदी को पार करते समय जब बात सावरगाँव वालों को मालूम हुई तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ कर लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी।
जैसे ही वर पक्ष वालों को यह खबर हुई तो उन्होंने भी लड़के के बचाव के लिए पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगाँव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। सावरगाँव एवं पांढुर्णा के लोग जगत जननी माँ चंडिका के परम भक्त थे इसी कारण दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों ने अपनी शर्मिंदगी मानकर इन दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले को मनाए जाने की परिपाटी चली आ रही है। प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी पांढुर्णा नगर के लोगो द्वारा पलाश का वृक्ष जंगल से लाकर पूजा-अर्चना करने के पश्चात कल प्रातः चार बजे दोनों पक्षों की सहमति से जाम नदी के बीच झंडे के रूप में गाड़ा जाता है ।लगभग 80 हजार की आबादी वाले पांढुर्णा नगर और सावरगाँव के बीचोंबीच से जाम नदी प्रवाहित होती है। इसी स्थल से गुजरी चौक बाजार के पास श्री राधा कृष्ण मंदिर वाले हिस्से में यह गोटमार मेला लगता है। इस दिन पूरा नगर विशेषकर गोटमार स्थल तोरणों से सजाया जाता है। धार्मिक भावनाओं से जुड़ा यह पत्थरों का युद्ध दोपहर दो बजे से शाम पाँच बजे तक पूरे शबाब पर होता है। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग घायल होते हैं, घायल होने पर अनेक खिलाड़ी माँ चंडिका के मंदिर की भभूति चोट लगे घाव पर लगाकर दोबारा मैदान में उतर जाता है। ऐसी मान्यता है कि माँ चंडिका के मंदिर की भभूत लगाने पर चोट तत्काल ठीक हो जाती है। शाम छह बजे तक शांति समिति और पुलिस प्रशासन के हस्तछेप से खेल को रोक जाता है । खेल को रोकते समय पुलिस के जावान भी घायल होते है । पलाश वृक्ष के झंडे को माँ के चरणों में अर्पित करते है और इसी के साथ गोटमार मेला समाप्त हो जाता है।
पूरे दुनिया में प्रसिद्ध पत्थर मारने का खेल….
पूरी दुनिया में प्रसिद्ध गोटमार मेले में एक दुसरे पर को पत्थर मारने का बहशी खेल आज भी मनाया चल रहा है जिसमें आज तक बारह लोगों की मौत हो गई है और सैकडो लोग धायल हुये है । हर बर्षों भारी पुलिस बल ओर धारा 144 लगने के बाद भी पुलिसकर्मी के बीच ये खेल चलता है इस मेले मैं हजारों लोगों का खून बहेता है लोग खुले में जुआँ शराब की बिक्री करते है । लेकिन पुलिस विभाग मूकदर्शक बनी रहती है । एक रक्त कांति तब हुई थी जब नेता जी सुभाष चंद बोस ने देश की आजादी के लिये गठित की गई आजाद हिंद फौज के लिये नारा दिया था कि तुम मूझे खून दो में तुम्हें आजादी दूगां! दुसरी रक्त कांति गोटमार मेले की है जिसमें प्रति बर्ष सैकड़ों लोगों का खून बेवजह बहाया जाता है ओर प्रशासन खिलाडियों के जुनून के सामने मूक दशकों की तरह तमाशा देखता है इस बर्ष भी ये खेल 3 तारीख को खेला जायेगा। प्रति बर्ष की तरह भी 3 तारीख को आयोजन शुरू होगा यहां पलास का पेड़ रूपी झंडा जाम नदी मैं रोपा जाता है औऱ साबरगांव व पांढुर्णा के खिलाडियों के बीच गोटमार यानी एक दुसरे पर पत्थर चलाने का सिलसिला शुरू होता है फिर दोनों पक्षों की वहशत और जुनून बढता जाता है और तक सेकडों लोग धायल होते है जो सुबह चालू होता है और शाम तक चलता हैे । ढोल नगाड़े बजते रहे मां चंडी के जयकारो के साथ दोनों पक्ष एक दुसरे बैखोफ होकर पथराव करते रहे । इस खूनी परंपरा का नियम यह है कि सबारगांव वाले झंडा बधाते है तथा पाढुर्णा वाले तोड़ने के लिये एक दुसरे पर पत्थर की बारिश करते है …
गोटमार मेला… खूनी संघर्ष की कहानी..
रिपोर्ट–ठा.रामकुमार राजपूत
पंचायत दिशा समाचार
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