हरछठ में संतान की दीर्घायु के लिए महिलाएं करती हैं व्रत….
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हरछठ (हलषष्ठी)
पंचायत दिशा समाचार
छिदंवाडा– यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है, इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है, इसी कारण इस पर्व को ‘हलषष्ठी’ या ‘हरछठ’ कहते हैं। इस दिन विशेष रूप से हल की पूजा करने और महुए की दातून करने की परंपरा है।
इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और उसके स्वस्थ्य जीवन की कामना के लिए व्रत रखकर पूजन आदि करती हैं। इस व्रत में विशेष रूप से गाय के दूध और उससे तैयार दही का प्रयोग वर्जित है। हरछठ व्रत से एक दिन पहले रविवार को बाजार में पूजन सामग्री खरीदने महिलाएं बाजार पहुंचीं। जहां पूजन सामग्री के अलावा पूजन में चढ़ने वाले फल और बांस से बनी छोटी टोकनियां की खरीदारी की। आज हरछठ का व्रत मुख्यालय सहित पूरे जिले में विधिविधान से मनाया जाएगा।
हलछट पर होती है विशेष पूजा
हलछट पूजा में भगवान शिव व माता पर्वती की मूर्ति बनाकर पूजा महिलाओं द्वारा की जाती है। पूजा आदि में केवल भैंस के दूध का उपयोग करने की परंपरा है। इस दिन भैंस के दूध से बने घी और दही का उपयोग पूजन आदि में किया जाता है। इस पर्व पर महुवा, आम, पलास की पत्ती, कांसी के फूल, नारियल, मिठाई, रोली-अक्षत, फल, फूल सहित अन्य पूजन सामग्री से विधि-विधान से पूजन करने का विधान है। शास्त्रों में संतान की रक्षा के लिए माताओं द्वारा यह व्रत करना श्रेष्ठ बताया गया है।
इन वस्तुओं का होता है विशेष महत्व..
इस व्रत में खास तौर पर लाई, चुरुकू, मिट्टी की डबली, महुआ, पसीई का चावल और विशेष रूप से भैंस का दूध और घी का महत्व होता है. इस दिन महिलाएं दिन भर का निर्जला उपवास करती है और अपने पुत्र की लंबी दीर्घायु की मनोकामना मांगती हैं. वहीं पंडित श्रवण शास्त्री ने बताया कि “पूजन के वक्त महिलाएं उनके जितने पुत्र होते हैं उतनी मटकिया चढ़ती हैं. इसमे मिट्टी का छोटा सा कुंआ बनाते हैं और उसमें जल डाल देते हैं. जब पूजा संपन्न हो जाती है उसके बाद माताएं उसी जल को अपने बच्चों के आंखों, मस्तक और शरीर पर लगाती है. जिससे पूजा का आशीर्वाद उन्हें मिल जाए.”