जनजाति कार्य विभाग द्वारा संचालित छात्रावासों में 20 वर्ष से चल रही मनमानी,
कमीशन के दम पर दिया जाता है अधीक्षकों का प्रभार…
कमीशन के चलते बच्चे हो रहे शोषण का शिकार…
बदहाल व्यवस्था के बीच रहने को मजबूर बच्चे, शिकायत पर नहीं होती कार्रवाई…
छिंदवाड़ा / जिलें में जनजाति कार्य विभाग द्वारा संचालित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रावासों एंव आश्रम शाला में कमीशन के आधार पर अधीक्षकों को प्रभार दिए जाने का खेल चल रहा है। इस खेल में शासन के नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है, लेकिन कमीशन के खेल के कारण कोई जांच कार्रवाई नहीं हो पा रही है। जनजाति कार्य विभाग के छात्रावासों में अधीक्षकों के प्रभार के संबंध में शासन द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी अधीक्षक को तीन वर्ष से अधिक किसी भी छात्रावास का अधीक्षक का प्रभार न दिया जाए…
जनजाति कार्य विभाग छिंदवाड़ा में हो रही अनदेखी दस /बीस सालों से एक ही जगह जमे है अधीक्षक…
मध्य प्रदेश शासन के स्पष्ट निर्देश है कि जैसे ही किसी अधीक्षक का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होता है, उसे विद्यालय में पढ़ाने के लिए वापस किया जाए। और पुन: कम से कम तीन वर्ष के बाद ही किसी छात्रावास के अधीक्षक पद का प्रभार सौंपा जाए। लेकिन जिले में कमीशन के खेल के कारण इस नियम का जमकर माखौल उड़ाया जा रहा है, जिला मुख्यालय में ही कुछ छात्रावास अधीक्षक ऐसे हैं जो पिछले 10 से 20 वर्षों से अधीक्षक के पद पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं, और सहायक आयुक्त जनजाति कार्य विभाग द्वारा ऐसे अधीक्षकों को हटाने के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
क्या है नियम…
आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग मध्यप्रदेश शासन के पत्र क्रमांक/छात्रावास/164/2017/23255 के माध्यम से प्रदेश के छात्रावास अधीक्षकों की पूर्णकालिक संविदा अधीक्षकों की व्यवस्था के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए गए थे। 3 वर्ष की पदस्थापना के उपरांत अधीक्षकों/संविदा अधीक्षकोंं/संविदा शाला शिक्षकों को स्कूलों में वापस पदस्थ किया जाए और उसके बाद कम से कम तीन साल उपरांत ही पुन: छात्रावास/आश्रमों में पदस्थ किया जाए।
जिलें में जनजाति कार्य विभाग द्वारा संचालित छात्रावास /आश्रम शाला में 70 फीसदी से ज्यादा अधीक्षक अन्य वर्ग के…
जनजाति कार्य विभाग के अंतर्गत जिले में कुल करीब 196 छात्रावास / आश्रम शाला संचालित हैं, वहीं जिला मुख्यालय में करीब 15/20 छात्रावास / आश्रम शाला संचालित हैं। विभागीय सूत्रों की बात माने तो जिले में करीब सत्तर फीसदी छात्रावासों में अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग से परे हटकर अन्य वर्ग के अधीक्षक पदस्थ किए गए हैं। अकेले जिला मुख्यालय की बात करें तो 15/20 छात्रावासों मेंं से करीब 12 छात्रावासों यानि पचास फीसदी से अधिक छात्रावासों में सामान्य वर्ग एवं पिछड़ा वर्ग के अधीक्षक पदस्थ किए गए हैं।
नियम 3 वर्ष का, जमें है 20 वर्ष से अधिक समय से…
छात्रावासों में अधीक्षकों के प्रभार के संबंध में शासन द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी अधीक्षक को तीन वर्ष से अधिक किसी भी छात्रावास का अधीक्षक का प्रभार न दिया जाए। जैसे ही किसी अधीक्षक का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होता है, उसे विद्यालय में पढ़ाने के लिए वापस किया जाए। और पुन: कम से कम तीन वर्ष के बाद ही किसी छात्रावास के अधीक्षक पद का प्रभार सौंपा जाए। लेकिन जिला मुख्यालय में संचालित दर्जनों छात्रावास एवं आश्रम शाला है जंहा 10से 15 सालों से एक ही जगह में पदस्थ है,जिला मुख्यालय के छात्रावासों में ही अधीक्षक के पद पर अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं।
नियम विरूद्ध कर दिया गया स्थानांतरण…
छात्रावासों में अधीक्षक पद पर नियुक्ति एवं स्थानांतरण के मामले में लंबा खेल जनजातीय कार्य विभाग में चल रहा है। सूत्रों की बात माने तो यहां सुविधा शुल्क के आगे नियमों की बलि चढ़ाई जा रही है,
:माध्यमिक शिक्षक की प्रायमरी में नियुक्ति
ट्राइबल विभाग में नियमों की बड़ी अनदेखी की गई है। बिछुआ के शासकीय हायर सेकेंडरी आमाझिरी खुर्द स्कूल में पदस्थ माध्यमिक शिक्षक भीमसिंह चौरे की पदस्थापना शासकीय प्राथमिक स्कूल एसटी कन्या शिक्षक परिसर में कर दी गई है। जबकि नियमों के मुताबिक माध्यमिक शिक्षक की प्रायमरी स्कूल में नियुक्ति नहीं होती है लेकिन ट्राइबल ने नियमों को ताक पर रखा गया है। ऐसे दर्जनों प्रकरण सामने आ रहे हैं जिसमें सीधे नोट देकर ट्रांसफर उद्योग शुरू होने की सुगबुगाहट दिखाई दे रही है।
रिपोर्ट – ठा•रामकुमार राजपूत
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