अंतर्राष्ट्रीय वन मेला भोपाल में किसी भी महिला समूह की भागीदारी नहीं केवल दिखावा
भोपाल -विषय महिला सशक्तिकरण लघु वन उपज एवं जड़ी बूटियौ से।
अंतर्राष्ट्रीय वन मेले में करीब करीब 100 प्रधानमंत्री वनधन केंद्रौ के तहत दुकान लगी और लघु वन उपज समितियां की दुकान भी लगी किंतु प्रायः देखने में यह आया कि यहां इन दुकानों पर महिलाएं यदा-कदा ही मिली 100 वनधन केन्द्रौ के तहत जो दुकान आई थी उसके अनुसार स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को मिलाकर देखा जाए तो करीब एक केंद्र में 300 महिलाएं होती हैं। क्योंकि एक बंधन केंद्र से 15 समूह जुड़े होते हैं और एक समूह में 20 महिला होती हैं। जिस प्रकार से एक केंद्र में 300 महिला हुई और 100 केदो में 30000 इससे लाभान्वित होना चाहिए। तथा हमारे प्रदेश में 1100 लघु वन उपज समितियां हैं। एक समिति में लगभग 1000 महिला व पुरुष इसके सदस्य हैं। इस प्रकार से 1100000 सदस्य हैं। कितनी बड़ी संख्या में लोग हैं पर महिलाएं दुकानों पर नहीं है। किंतु धरातल पर प्रधानमंत्री वनधन केंद्रौ और समितियौ की दुकान कागजों में ही संचालित हो रही हैं। कुछ को छोड़ कर, उनकी जगह पर फॉरेस्ट गार्ड और रेंजर जुगाड़ और जुगत करके अन्य लोगों को या उनका सामान लेकर समिति के नाम से दुकान खोल देते हैं। जिसका परिणाम यह निकलकर आया है। इस मेले में दुकानों से पुरुष सशक्तिकरण हो रहे हैं। ना कि महिला सशक्तिकरण जब किसी विषय को उजागर किया जाए तो उसकी लाज रखते हुए विषयांतर्गत काम भी दिखना आवश्यक होता है। मेरा शासन और प्रशासन से यह अनुरोध है कि इस तरीके की बनावटी विषय रखना और विषय की विपरीत प्रदर्शन करना क्या यह न्याय उचित है और मजे की बात यह है कि हमारे प्रदेश में 400 दुकान अपनी है प्रत्येक रेंज में लघु वन उपज को क्रय करने हेतु है । परंतु उन में ताला पड़ा हुआ है यह दुकानै ₹500000 खर्च करके प्रत्येक रेंज में बनाई गई हैं। 32 लघु वन उपजौ के मिनिमम सपोर्ट प्राइस भी निश्चित है। जिनकी खरीद इन दुकानों से किया जाना है। किंतु नहीं हो रहा है। जो योजना है वह जनहिताय और जनसुखाय में है। उन्हें जमीन पर भी उतरने का प्रयास किया जाना चाहिए, ना की दिखावा किया जाए वन मेले में प्रदेश के सभी आल्हा अफसर ने अवलोकन किया जनप्रतिनिधियों ने भी अवलोकन किया सभी ने विषय भी देखा मेला भी देखा और मेले में लगी दुकानों पर दुकानदार भी देखें इस मेले से महिलाओं का सशक्तिकरण कैसे हो रहा है। यह मेरी समझ से परेह हैं। कृपा कर विषय के अनुरूप व्यवस्था बनाकर महिलाओं को सशक्तिकरण की दिशा में ले जाने का प्रयास किया जाना न्याय उचित होगा, सिर्फ हंगामा खड़ा करना मकसद नहीं होना चाहिए।
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छिंदवाड़ा की वन भोज रसोई बनाकर रह गई।