पांढुर्ना में खूनी खेल जारी 220 धायल …
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला में खूनी खेल लाइव अपडेट…
पांढुर्ना में विश्व प्रसिद्ध खूनी खेल गोटमार लाइव अपडेट…
पांढुर्ना में चल रहा गोटमार मेले के दौरान पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसा रहे हैं 220 लोग हुए घायल
पांढुर्णा में गोटमार मेले का आयोजन मंगलवार सुबह 10 बजे से शुरू हुए मेले में दोपहर 2 बजे तक पत्थर लगने से 220 लोग घायल हुए हैं। 4 की हालत गंभीर है। सभी का इलाज सिविल अस्पताल में किया जा रहा है। मेले में 4 स्वास्थ्य शिविर भी लगाए गए हैं। 6 जिलों का पुलिस बल तैनात है। गोटमार में लेकर चलते दोनों ही ओर से खुलेआम गोफन का प्रयोग चल रहा है शांति समिति एवं चंडी माता मंदिर द्वारा बार-बार खिलाड़ियों से निवेदन करने पर भी कोई असर नहीं दिख रहा है पुलिस प्रशासन द्वारा ड्रोन कैमरे की मदद से गोफन चलाने वालों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है
पांढुर्णा -जाम नदी के बीचो-बीच गोटमार पत्थर बाजी का खेल यहां की आराध्य देवी मां चंडिका का नाम लेकर पलाश का वृक्ष सुबह 6 बजे गाड़ा गया उस उपरांत सुबह 10 बजे तक पूजा अर्चना चली फिर प्रारंभ हुआ खूनी खेल जिसे कोई गोटमार कहता तो कोई परंपराओं का नाम देता है तो कोई प्यार का प्रतीक बताता है विश्व प्रसिद्ध गोटमार के चलते पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष की ओर से खुलेआम गोफन का प्रयोग जारी है डॉक्टर के बताए अनुसार गोफन के प्रयोग से ही आज गोटमार में खिलाड़ी का पैर टूटा अब तक 4 गंभीर घायल 41 घायल अभी तक एक का पैर टूटा है दो बजे के बाद गोटमार अपने चरम पर होगा…
पांढुर्ना में गोटमार का इतिहास..
छिंदवाड़ा दुनियाभर में गोटमार खेल के नाम से प्रसिद्ध है परंपरा के नाम पर सदियों से खेला जा रहा खूनी खेल, नदी किनारे हाथों में पत्थर और एक दूसरों को लहू-लुहान करने के जुनून – हर साल पांढुर्णा जिले में एक अजब-गजब खेल खेला जाता है. हर साल ये खूनी खेल पोला त्योहार के दूसरे दिन खेला जाता है,जहां नदी के दोनों किनारे आमने-सामने खड़े लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. ये खूनी खेल विश्वभर में गोटमार खेल के नाम से प्रसिद्ध है.
इस साल ये खेल 3 सितंबर का आयोजित होने वाला है.16वीं शताब्दी से शुरू हुआ खून का खेल – माना जाता है कि ये खेल 16वीं शताब्दी में जाटबा राजा द्वारा दूसरे राजा पर पत्थर बरसाने के बाद एक परंपरा के रुप में शुरू हुआ है. हालांकि, इस खेल के बारे में इतिहास का उल्लेख नहीं है.दो गांव के ग्रामीण करते हैं एक-दूसरे पर पथराव -जिला पांढुर्णा में हर साल ये अनूठा गोटमार खेल खेला जाता है. ये खेल पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे खेला जाता है, जहां पलाश के लंबे पेड़ को नदी के बीच में एक झंडे के साथ खड़ा किया जाता है.जाम नदी के किनारे दो गांव, पांढुर्णा और सावरगांव के ग्रामीण खड़े होकर एक-दूसरे पर पथराव करते हैं. पथराव उन लोगों के ऊपर किया जाता है, जो बीच नदी में खड़े झंडे को हटाने की कोशिश करते हैं. जिस गांव का व्यक्ति उस झंडे को वहां से निकालना में सफल हो जाता है, वह गांव विजयी माना जाता है.पत्थरों की बौछार इस खेल के दौरान लगातार होती रहती है. पथराव तब तक नहीं रूकता जब तक झंडा नदी के बीच से हटा न लिया जाए.मां चंडिका देवी को दिया जाता है
लहू -हर साल जाटबा राजा की याद में पोला त्योहार के दूसरे दिन खूनी खेल के नाम से विख्यात पत्थरों का खेल खेलकर, हजारों की संख्या में लोग मां चंडिका देवी को लहू और पलाश के झंडे को देकर सदियों पुरानी इस खूनी परंपरा को निभा रहे हैं.पांढुर्णा में आज भी बसी हैं जाटबा राजा की यादें -पांढुर्णा जिले के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले जाम नदी के किनारे जाटबा राजा का विशालकाय किला था. इस किले में आदिवासियों की ताकतवर सेनाओं का साम्राज्य था. आज भी इस किले की दीवार के अवशेष नजर आते हैं. यही नहीं, आज भी जाटबा राजा की समाधि मौजूद है, जो जर्जर अवस्था मे पड़ी हैं. इसकी सुध आज तक न तो नगर पालिका ने ली और न ही जनप्रतिनिधियों ने.
विश्व प्रसिद्ध खूनी खेल( गोटमार ) की हैं दो कहानियां है चर्चित -पत्थर बरसा कर जीती थी जंग -स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि पांढुर्णा की जाम नदी किनारे 16वीं शताब्दी में विशालकय किला था, जिसके राजा जाटबा थे. जाटबा नरेश का प्रभुत्व मोहखेड़े के देवगढ़ किले तक था. इस किले के पास ही मां चंडी माता का मंदिर था, जो आज भी मौजूद हैं.जानकारों के मुताबिक राजा जाटबा चंडी माता के परम भक्त थे. एक बार नागपुर के राजा भोसले और उनकी सेना ने जाटबा नरेश के किले पर हमला कर दिया. उस समय जाटबा नरेश की सेनाओं के पास हथियार नहीं थे. ऐसे हालात में जाटबा नरेश और उनकी सेना ने किले से पत्थरों की बौछार करना शुरू कर दिया. भोसले राजा की सेना पत्थरों का मार सहन नहीं कर सकी और उन्हें हारकर वापस नागपुर लौटना पड़ा.तब से लेकर आज तक जाटबा नरेश की याद में पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुर्णा की जाम नदी किनारे बसे दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार कर सदियों से चली आ रही इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं.
जाम नदी पर मोहब्बत की याद में बहता है पत्थर मारकर खून -सदियों पुरानी गोटमार खेल की परंपरा की दूसरी कहानी में एक प्रेम प्रसंग का समावेश माना जाता है. इस खेल के बारे में दूसरी कहानी भी चर्चित है कि सदियों पहले पांढुर्णा का एक युवक सावरगांव की युवती पर मोहित हो गया था.दोनों पक्ष युवक-युवती के विवाह के लिए राजी नहीं थे. ऐसे में दोनों भादों की अमावस्या के दूसरे दिन सुबह शादी करने के लिए भागने लगे. इस दौरान सावरगांव पक्ष के लोग आक्रोशित हो गए और युवक-युवती को रोका गया, लेकिन दोनों नहीं माने और नदी में भागने लगे. इसके बाद विवाद की स्थिति बन गई. देखते ही देखते सावरगांव को लोगों ने युवक-युवती पर पथराव करना शुरू कर दिया.इस बात की बनक जब पांढुर्णा गांव के लोगों को मिली तो वे भी पथराव करने करने लगे. इस वजह से प्रेमी-युगल की वहीं मौत हो गई. इसलिए उन्हीं की याद में भादो अमावस्या और पोला त्योहार के दूसरे दिन यह खूनी (गोटमार ) खेला जाता है. कई लोगों की जा चुकी है जान –
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला सदियों से चला आ रहा है
जहां पुलिस प्रशासन के द्वारा हर साल 144 धारा लगा उसके बावजूद भी हजारों की संख्या में लोग गोटमार मेले में शामिल होते हैं, जहां प्रशासन की तमाम कोशिशें के बाद भी बड़े-बड़े पत्थर ट्रैकों से नदी के दोनों और एक दूसरे पर पत्थर भर पानी के लिए आ जाते हैं. इस दौरान सैकड़ो लोगों की जान भी जा चुकी है.कई लोगों के परिवार उजड़ चुके हैं, उसके बावजूद भी यहां खूनी परंपरा लगातार चली आ रही है ।