Home DHARMA भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के सबसे बड़े रक्षक..

भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के सबसे बड़े रक्षक..

भगवान श्री कृष्णा

भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के सबसे बड़े रक्षक..

कृष्ण जन्माष्टमी पर एक पेड़ अवश्य लगे…

छिदंवाडा– कल पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी। इसलिए सभी लोग भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी में आपने परिवार के साथ एक पेड़ भगवान श्री कृष्णा के नाम लगाकर भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी मनाएं । क्योंकि प्रकृत्ति के सबसे बड़े प्रेमी, हितैषी और संरक्षक भगवान श्री कृष्ण की कल कृष्ण जन्माष्टमी है।
भगवान श्री कृष्ण के जीवन लीला में हर जगह पेड़ों का महत्व परिलक्षित होता है, चाहे कदंब के पेड़ के नीचे बैठकर बंशी बजाना हो या वृंदावन में बंशी बट की बात हो, भगवदगीता में भगवान कृष्ण ने पीपल के वृक्ष के लिए”अश्वथः सर्व वृक्षाणाम” कहा है। तो आइए इस जन्माष्टमी हिंदू धर्म में पवित्र माने गये पेड़ लगाकर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाये।

कम से कम एक पेड़ अवश्य लगायें

प्राकृतिक के सबसे बड़े रक्षक भगवान श्री कृष्णा..
हिंदू धर्म में कहां गया है कि धर्म की सेवा और रक्षा से मनुष्य के सभी मनोरथ सफल होते हैं धर्म से ही समाज है और समाज से ही हम हैं इतिहास साक्षी की देवताओं ने धर्म की रक्षा के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और धर्म प्रेमी राजाओं व महापुरुषों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया
हर मनुष्य को पेड़ पौधे की रक्षा करना चाहिए…
आज के इस युग में जहां हमारा पर्यावरण संकट में है वही लोग पेड़ों की कटाई अंधाधुंध कर रहे हैं इसीलिए भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी के दिन हमें शपथ लेना चाहिए कि हम पेड़ों की रक्षा करें क्योंकि भगवान श्री कृष्णा प्रकृति के सबसे बड़े रक्षक हैं गोवर्धन पर्वत की रक्षा करके उन्होंने दुर्लभ वनस्पतियों का संरक्षण किया । यदि हम प्रकृति का संरक्षण- सर्वर्धन नहीं करेंगे तो हमारे लिए प्राकृतिक संसाधनों का संकट उत्पन्न हो जाएगा इसलिए पृथ्वी का हरा भरा रहने के लिए पौधारोपण के साथ-साथ उनके देखरेख भी करनी चाहिए मनुष्य पौधारोपण तो करते हैं लेकिन उसका रखरखाव नहीं करते जिससे पौधे पनप नहीं पाते इसलिए पौधे की उचित देखभाल आवश्यक है.

भगवान श्री कृष्ण से सीखिए पर्यावरण को संरक्षित करने की कला…
भगवान श्री कृष्ण प्रकृति के प्रति कितने संवेदनशील और प्रकृति प्रेमी थे, इसका पता उनके उपयोग की जाने वाली प्रिय वस्तुओं के अवलोकन से चलता है। प्रकृति ने आज तक मानव को बिना मांगे ही सबकुछ दिया है।
वृक्ष कबहूँ नहि फल भखै,नदी न संचै नीर।
परमारथ के करने साधुन धरा शरीर।।
वास्तव में इस वसुन्धरा पर अवस्थित प्रकृति के ये सजीव उपहार संतों के स्वभाव वाले ही हैं, जो सदैव अपना सब कुछ मानव को दे देते हैं। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित चौपाई के अनुसार मानव को अनुसरण करना चाहिए।
परहित सरसि धर्म नही भाई,परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।
अर्थात दूसरों का हित करने के बराबर कोई पुण्य नहीं और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के बराबर कोई पाप नहीं। आज भी प्रकृति परहित के धर्म पर चल रही है।
रिपोर्ट- ठा.रामकुमार राजपूत
मोबाइल – 8839760279


प्रधानसंपादक- पंचायत दिशा समाचार

अपील- श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर एक पेड़ भगवान श्री कृष्ण के नाम पर अवश्य लगे..