Home NATIONAL अमृत-काल में भी, मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं,छिदंवाडा जिलें के आदिवासी

अमृत-काल में भी, मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं,छिदंवाडा जिलें के आदिवासी

अमृत-काल में भी, मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं,छिदंवाडा जिलें के आदिवासी
By admin
24,2024

(पंचायत दिशा समाचार)

छिदंवाडा – दुनिया भर में आदिवासी दिवस हर्षोल्लास के साथ आदिवासी समुदाय के लोग जश्न के साथ मनाते है । लेकिन भारत में उनका अथक संधर्ष अभी भी खत्म नहीं हुआ है । उनके संधर्ष आज भी जारी है आदिवासी समुदाय के लोग आज भी आपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए अभी भी आंदोलित है। उनके संधर्ष के चलते इतना जरूर हुआ है कि वह इस मुकाम पर पहुंच गए कि सीधे सत्ता को चुनौती देने में समर्थ होने लगे है। और सत्ता में बैठे लोग भी उनके तेवर समझने की कोशिश कर रहे है । सभी जान रहे होंगे कि, आज भी आदिवासी लोग जंगलों में निवास करते हैं। और जंगलों पर ही निर्भर रहते हैं। जंगलों के बिना, आदिवासीयों के अस्तित्व की कल्पना करना असंभव है। जैसे जंगल से लकड़ी लाना और लाकर उसे बेचना, उसी से अधिकतर आदिवासियों का जीवन-यापन होता है। आज भी आदिवासी जंगलों में छोटे-छोटे घर बनाकर रहते हैं। आज भी उन आदिवासियों को, शासन की सुविधा नहीं मिल पाई है। इस कारण आदिवासी, जंगलों से ही अपने जीवन की अवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
आज भी आदिवासी समुदाय को शासन की योजनाओं का नहीं मिलता लाभ…

कौन सी सुविधा आज भी यहाँ के आदिवासियों तक नहीं पहुंच पाया है

मध्यप्रदेश के छिदंवाडा जिलें के आदिवासी समुदाय के लोगों को आज भी मूलभूत के लिए तरस रहे है। आदिवासी अंचलों में रहने वाले आदिवासी समाज के लोग सड़क, बिजली,पानी आवास एंव उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए भटकना पड़ता है। आदिवासी समुदाय के लोग अधिकाशं जगलों के बीच में रहते है ।जंहा उनके समाज के लोग रहते है। यहां के आदिवासी के कई धरों में आज भी बिजली नहीं है।वो जंगल में अंधेरे में ही रहते हैं और पानी नदी से लाते हैं, खासकर गर्मी के दिनों में। क्योंकि, जंगल में रहने वाले आदिवासी, पानी पीने के लिए छोटे-छोटे गड्ढा बनाकर, उसमें से पानी पीने के लिए लाते हैं। और बिजली की व्यवस्था न होने के कारण, अंधेरा होने से पहले खाना बनाकर, खाकर सो जाते हैं। क्योंकि, अंधेरा होने के बाद, यहाँ के लोग घर से बाहर नही निकलते हैं। चूँकि, इनके पास कुछ और साधन भी नहीं है। जिनके सहारे, यह लाइट जला सकें और रात में कहीं आ-जा सकें।

आदिवासी के धर जगलों और पहाड़ों में होने के कारण सरकार की सुविधा उन तक नहीं पहुंच पाती..

जिलें में आदिवासियों समुदाय के लोगों के घर
आमतौर पर देखा जाये तो, जंगल और पहाड़ी इलाकों में होने के कारण, शासन की सुविधा उन तक नहीं पहुंच पाती। जिससे, आदिवासी समुदाय, शासन की सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते हैं। इसका नुकसान सबसे अधिक बच्चों को उठाना पड़ता है। क्योंकि, जंगली इलाकों में घर होने के कारण, बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और आदिवासी बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। फिर भी, शासन को आदिवासियों की समस्याओं का निवारण करना चाहिए। चूँकि, यहाँ के आदिवासियों के पास, खेती करने के लिए खेतों की व्यवस्था नहीं है। आज भी वो लोग पंरपरागत खेती कर रहे है ।यदि, शासन इस इलाके के आदिवासियों की समस्याओं का समाधान करे, तो इन आदिवासियों को ऐसी कोई समस्या नहीं होगी और इनके बच्चों को भी अच्छे स्कूलों की सुविधा मिल पाएगी। जिससे, आदिवासी बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर सकेंगे और अपना भविष्य बना सकेंगे। लेकिन सरकारों की योजना सिर्फ कागजों में चलती है । आज भी सरकारों की योजना का इन लोगों को लाभ पूरा नहीं मिल पा रहा है ।
आदिवासी बच्चों के लिए सरकारों अच्छी शिक्षा,स्वास्थ्य की बात तो करती है ।पर क्या इन आदिवासी समाज के बच्चों को मूलभूत सुविधाएं मिल रही है ।ये कोई नही सोच रहा है।
पलायन का दर्द: गांवों में काम नहीं तो मजदूरी के लिए परिवार सहित पलायन..

आदिवासी बाहुल्य छिदंवाडा जिले में मजदूरों को काम नहीं मिलने के कारण बड़ी संख्या में युवा अपने परिवार के साथ पलायन करने को मजबूर हैं। घर की सुरक्षा व पशुओं की देखरेख के लिए बस एक वृद्ध को छोड़ जाते हैं। जिससे गांवाें में सन्नाटा पसर रहा है। आदिवासी समाज के लोगों का कहना है। क्षेत्र में काम नहीं होने के कारण मजबूरी में दूसरे राज्य काम करने जाना पड़ रहा है। अगर यहीं पर काम मिले तो परिवार हमारे साथ रह सकता है। उनका कहना था यहां काम नहीं मिलने के कारण गुजरात ,महाराष्ट्र जाना पडता है काम के लिए

मनरेगा में काम के अभाव और कम मजदूरी की समस्या..

मनरेगा में जरूरत के अनुरूप काम और महंगाई के अनुपात में मजदूरी नहीं मिल रही है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन जारी है

महंगाई प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतें सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। गरीब परिवारों को घर चलाना मुश्किल हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के युवा ज्यादा मजदूरी की आस में शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। समस्या यह है कि मनरेगा में काम भी कम मिल रहा है और महंगाई के हिसाब से मजदूरी भी नहीं है। 221 रुपए प्रति दिवस मजदूरी से घर का खर्चा नहीं संभल रहा है। शहरों में आसानी से 400 से 500 रुपए की आय हो जाती है। इसलिए मजदूरों का शहरों के लिए पलायन जारी है।
वस्तुत: यह पलायन रोकने के लिए ही मनरेगा का प्रादुर्भाव हुआ है। स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा का संचालन किया जा रहा है। छिंदवाड़ा जिले में 37 प्रतिशत आबादी आदिवासी बाहुल्य है। आय का जरिया मजदूरी है। कुछ परिवार खेती-किसानी का कार्य कर रहे हैं। गांव में आय के दूसरे साधन नहीं हैं। ज्यादा आय और दूसरे काम की तलाश में युवा पीढ़ी शहरों की तरह जा रही है। पातालकोट के एक दर्जन गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं। यहां सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं। क्षेत्र के युवा नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, भोपाल, हैदराबाद जैसे शहरों में जाकर मजदूरी करते हैं। त्योहार और पर्वों पर ही वे घर लौटते हैं। कुछ दिन गांव में रहने के बाद फिर काम की तलाश में शहर चले जाते हैं। यह सिलसिला सालभर चलता रहता है।
अमरवाड़ा, हर्रई, जुन्नारदेव, बिछुआ, पांढुर्ना, सौंसर में भी यही स्थिति है। अन्य जिलों की स्थिति भी बेहतर नहीं हैं। कोरोना लॉकडाउन में छिंदवाड़ा में 13000 से अधिक फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों की वापसी हुई थी। 50,000 से अधिक मजदूर भी लौटे थे। स्थितियां ठीक होने पर श्रमिक और मजदूर परिवार फिर से जिले से बाहर चले गए हैं। अगर स्थानीय स्तर पर पर्याप्त काम और मजदूरी के इंतजाम होते तो पलायन की स्थिति नहीं बनती। मनरेगा में घर खर्च चलाने के लिए पर्याप्त मजदूरी मिलती तो भी शहरों की तरफ आकर्षण कम होता। एक और उपाय है, जिस पर सरकार की नजर नहीं है और वह यह कि औषधि, उपज और अन्य स्थानीय विशेषताओं के हिसाब से प्रोसेसिंग यूनिट लगाने का काम बिलकुल नहीं हो रहा है। मक्का और संतरा उत्पादन में अग्रणी छिंदवाड़ा में यह प्रोसेसिंग यूनिट खोलने पर ध्यान देना चाहिए।

रिपोर्ट-ठा रामकुमार राजपूत

मोबाइल-8839760279