धरती में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरतों को पूरा कर सकती है,लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है….
By admin
24,2024
(पंचायत दिशा समाचार)
छिदंवाडा- महात्मा गांधी के सोलह आना सच्चे इस वाक्य को ध्यान में रखकर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जाये, तो किसान को न तो अपने उत्पाद को औने-पौने दाम में बेचना पड़े और न ही पैदावार कम होने की शिकायत रहे। लेकिन सोना उगलने वाली हमारी धरती पर खेती करने वाला किसान को जानकारी नहीं होने के अभाव में कीटनाशक बेचने वाले कंपनी के बहकावे में हो रहे शिकार.. आज जिलें के किसानों को कुछ भी पता नहीं है कि कौन सी परिस्थितियां में खेतों में कौन सी कीटनाशक या रसायन खाद कितनी डालें। क्या इसके लिए कृषि विभाग जिम्मेदार नहीं है? जिलें में खाद बीज एंव कीटनाशक की दुकान के संचालक तो लायसेंस लेते है लेकिन वो दुकान में नहीं बैठते है खाद बीज ,कीटनाशक की दुकानों में अप्रशिक्षित लोग खाद बीज एंव कीटनाशक की दुकान संचालित करते हैं ।और मनमर्जी से किसानों को कीटनाशक एवं दवा बेच रहे हैं लेकिन जिम्मेदार कृषि विभाग कभी इन दुकानों की जांच नहीं करते है। किसान कीटनाशक एंव खाद बीज बेचने वाले दुकानदार के बहकावे में आ जाते है । खाद बीज बेचने वाले किसानों को अधिक उपज की लालच देती है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है?
जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है ।
रासायनिक खाद बंजर कर रही जमीन…
यूरिया और कीटनाशक जमीन को बना रहे बंजर, देश की 32 फीसदी भूमि होती जा रही बेजान,
कृषि प्रधान देश भारत पर ये एक और आफत है। जल्द ही सरकारें और किसान जागे तो लाखों हेक्टर जमीन पर फसलें नहीं उग पाएंगी। कारण है । रासायनिक खाद्य और कीटनाशक के अंधाधुध इस्तेमाल और गोबर -हरी खाद के कम उपयोग से देश की 32 फीसदी खेती योग्य जमीन बेजान होती जा रही है।जमीन में लगातार कम होते कार्बन तत्वों की तरफ अगर जल्द किसान और सरकारों ने ध्यान नहीं दिया तो इस जमीन पर फसलें उगाना बंद हो सकती हैं किसान जानकारी के अभाव में खेतों में कीटनाशक और रसायन का उपयोग अधिक कर रहा है क्योंकि किसानों को सही सलाह देने वाला विभाग सक्रिय नहीं रहता है ,
शोभा की सुपारी बने मिट्टी परीक्षण केंद्र
जिलें के किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि कृषि विभाग के द्वारा उन्हें सही समय पर जानकारी नहीं दी जाती है। जिलें में किसानों के कभी भी मिट्टी परीक्षण करने की कृषि विभाग के कर्मचारी सलाह नहीं देते है ।ना ही कभी कृषि विभाग के अधिकारी/ गांव में किसानों को कृषि संबंधित जानकारी नहीं देते है। जानकारी के अभाव में किसानों कीटनाशक एंव खाद बेचने वाले दुकानदारों के बहकावे में आकर अपने खेत में अधिक मात्रा में कीटनाशक एंव रसायन खाद का उपयोग करते है।यदि समय रहते सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो किसानों की जमीन के बंजर होने से कोई नहीं रोका सकता है । इससे मिट्टी की अवक्रिया प्रभावित हो रही है और यह जिले की मिट्टी को अम्लीयता व क्षारीयता की ओर ले जा रही है। जमीन बंजर भी हो रही है। अधिक यूरिया एंव कीटनाशक का उपयोग करने पर भूमिगत जल संसाधन भी प्रदूषित हो जाते हैं। उनमें नाइट्रल नाईट्रेट की अधिकता होने की वजह से पानी विषाक्त हो जाता है। यूरिया का बेतहाशा प्रयोग वायुमंडल को भी प्रदूषित कर ग्लोबल वार्मिग के लिए उत्तरदायी होता है।
रिपोर्ट-ठा.रामकुमार राजपूत
खबरें एवं विज्ञापन के लिए संपर्क करें-8839760279