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आखिर क्यूं,नेताओं को जीताने वाले आदिवासी समाज के बच्चे हो रहे शिक्षा से वंचित ?

आखिर क्यूं,नेताओं को जीताने वाले आदिवासी समाज के बच्चे हो रहे शिक्षा से वंचित ?

रिपोर्ट-ठा.रामकुमार राजपूत
दिनांक-21/07/2024

छिदंवाडा(पंचायत दिशा समाचार) मध्यप्रदेश के छिदंवाडा जिलें में अधिकांश विधानसभा आदिवासी समाज के लिए आरक्षित है ।और इन्हीं समाज के लोग विधायक बनते है ।उसके बाद भी ये आपने समाज के बच्चों के भबिष्य के बिषय में कोई चिंता नहीं करते है जिसके कारण आज छिदंवाडा जिलें के आदिवासी बच्चे शिक्षा से बंचित होतें जा रहे है ।आदिवासी इलाकों के कई स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है ।तो इन बच्चों को शिक्षा कौन देगा । ये बडा सवाल है ।इसलिए ऐसे आदिवासी विधानसभा से आने वाले नेता-विधायकों को फिलहाल तो डूब के ही मर जाना चाहिए उन सबके होते हुए भी उनके समाज के हजारों आदिवासी छात्रों का भविष्य खतरे में है! सरकार भले लाख दावें कर ले और भले ही जिलें की शिक्षा- व्यवस्था जहन्नुम में चली जाए पर नेता -विधायक के बेटे-बेटियां लाखों फ़ीस देके बड़े-बड़े संस्थानों से शिक्षा लेने के बाहर पढाई करते है लेकिन वही विधायक-नेताओं को भारी मतों से जीताकर विधायक बनाने वाले उन आदिवासी समाज के बच्चों की स्कूली शिक्षा की अगर हम बात करें तो इसके एकदम ही विपरीत रहती है।
हर साल सरकार शिक्षा की बेहतरी के लिए बड़े-बड़े वादे ,दावे करती हैं और अपनी उपलब्धियां गिनाती फिरती है कि हमने आदिवासी समाज के बच्चों के लिए छात्रावास,आश्रमशाला, माँडल स्कूल, सैकड़ो उत्कृष्ट विद्यालय खोले,हमने फालना काम किया ढेकना काम किया..लेकिन जब आप धरातल पर देखिएगा तो आज भी हजारों गरीब आदिवासी बच्चे अपनी मूलभूत आवश्यकता यानी शिक्षा से कोसों दूर हैं। मैं ऐसा इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि ऐसा ही एक आंकड़ा जिले के आदिवासी अंचलों के बच्चे आज भी अपनी प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं।
जिसके बारे में हम आज इस खबर के माध्यम से आपको बताने जा रहें हैं दरअसल ,हम बात कर रहे
आदिवासी अंचल के स्कूलों कितने है जंहा स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं है ।जुन्नारदेव में 63, तामिया में 41 और र्हरई विकासखंड में सबसे ज्यादा 48 स्कूल ऐसे है जहां पर एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं है. अतिथियों शिक्षकों के भरोसे कराई जाती है पढ़ाई..
इन स्कूलों में पदस्थ शिक्षक अटैचमेंट या ट्रासफर करा देते है जिसके कारण आदिवासी अंचलों स्कूलों में टीचरों की कमी है या कहो शिक्षक विहीन स्कूल है ।
आदिवासी बहुत क्षेत्र में बच्चे अपने मूलभूत आवश्यकता यानी प्राथमिक शिक्षा से दूर हैं तो फिर यह सरकार और प्रशासन के लिए बहुत गंभीर एवं चिंता का विषय है और इस पर हमें और आपको भी सोचने की जरूरत है साथ ही साथ यहाँ के अधिकारी ,विधायक
,सांसद पर भी यह एक बड़ा सवाल है क्यूंकि आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा- व्यवस्था बहुत ही ख़राब चल रही और आज तक कोई सुधार नहीं हो पाया है। आखिर इन क्षेत्रों में लापरवाही किसके तरफ से हो रही है और लापरवाही हो भी रही है तो इसमें सबसे जायदा नुकसान तो इन आदिवासी समाज के मासूम बच्चों को ही उठाना पड़ रहा है अपनी स्कूली शिक्षा से वंचित होकर ।

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जिलें के आदिवासी ग्रामीण अंचलों में संचालित स्कूलों में आज शिक्षा के बुरे हाल है कारण है इन आदिवासी बच्चों के पढने के लिए कोई शिक्षक नहीं है।अगर स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है तो कैसे पढ़ेगा आदिवासी बच्चों और कैसे होंगा इनका विकास जी हा हम बात कर रहे हैं । जिले के आदिवासी अंचलो की जहां पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल तो जाते हैं लेकिन पढ़ाने के लिए स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है. सरकार ने ‘स्कूल चले हम’ अभियान तो जोर-जोर से चलाया.लेकिन सरकार के मंत्री और जिले के अधिकारी एंव आदिवासी जनप्रतिनिधि भूल जाते है कि आज भी जिले के आदिवासी इलाकों के सेकडों स्कूलों में एक भी टीचर नहीं है। जिलें के आदिवासी जनप्रतिनिधि भी इस और कभी ध्यान नहीं देतें है ।

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