श्रीमती इंदिरा गांधी की मनमानी का नतीजा अपातकाल: हेमंत खंडेलवाल
- कांग्रेस मुक्त भारत होने पर ही मिट सकेगा आपातकाल का धब्बा: हेमंत खंडेलवाल
छिंदवाड़ा / आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर जिला भाजपा कार्यालय में पत्रकार वार्ता आयोजित की गयी। वार्ता को संबोधित करते हुए बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल ने कहा कि ने कहा की 1975 में आज की ही तारीख में लोकतंत्र की हत्या तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत पर थोपे गए आपातकाल को भारतवासी कभी नहीं भर सकते हैं। लोकतंत्र को ताक पर रखकर तानाशाही का ऐसा विकृत रूप न तो इससे पहले कभी देखा गया था और न ही इसके बाद कभी देखा जाएगा। संविधान का हवाला देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत के संविधान की खुले तौर पर हत्या की थी। आपातकाल की मूल वजह 12 जून, 1975 को आया इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह फैसला था जिसमें श्रीमती इंदिरा गांधी के रायबरेली से सांसद के तौर पर चुनाव को अवैध करार दिया गया था। 1971 के आम चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने उनके खिलाफ चुनाव में हेरफेर करने के लिए सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था ,दोषी पाए जाने पर हाईकोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया गया था और अगले छह साल के उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई थी।

उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले से श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपना आपा खो दिया था। और भारत के संविधान और लोकतंत्र का गला घोंटते हुए मनमाने तरीके से आपातकाल की घोषणा कर दी थी। भारतीय संविधान का (39वां संशोधन) अधिनियम, 1975 प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को शून्य घोषित करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के जवाब में अभिनियमित किया गया था। इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा लोक सभा अध्यक्ष से जुड़े विवादों को न्यायपालिका के दायरे से बाहर कर दिया गया था तथा कुछ महत्वपूर्ण अधिनियमों को नौवीं अनुसूची अनुसूची में शामिल कर दिया गया था। वास्तव में यह तीसरा एवं सर्वाधिक विवादास्पद राष्ट्रीय आपातकाल कांग्रेस की विचारधारा और श्रीमती इंदिरा गांधी का असली चेहरा था। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक चला था। लगभग दो साल की इस अवधि को भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा माना जाता है। इस दौरान नागरिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हुआ था। आपातकाल लगने से देश रातों रात जेलखाने में तब्दील हो गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
उन्होंने कहा कि तानाशाही किस कदर थी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि आपातकाल के मुखर आलोचको, पत्रकारों , समाजसेवी संस्थानों , फिल्मी कलाकारों को भी इसका दंश झेलना पड़ा था। किशोर कुमार के गानों को रेडियो और दूरदर्शन पर बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। देव आनंद को भी अनौपचारिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था। आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी सबसे दमनकारी अभियान साबित हुआ था। नसबंदी का फैसला लागू कराने का जिम्मा संजय गांधी पर था। कम समय में अपने आप को साबित करने के लिए संजय गांधी ने इस फैसले को लेकर बेहद कड़ा रुख अपनाया था। इस दौरान घरों में घुसकर, लोभ लालच देकर लोगों की नसबंदी की गयी . विपक्ष के नेताओं को ओर कई सामान्य नागरिको जेल में ठूंस दिया गया ओर उन्हें प्रताड़ित किया गया ।






