कटकूही बालक आश्रम में बच्चों का शिक्षा का स्थर बेहद कमजोर..
आश्रम शाला में पढ़ने वाले बच्चों को गिनती तक नहीं आ रही है और ना जोड़ना घटाना…
छिदंवाडा -भले ही सरकार आदिवासी बच्चों को अच्छी शिक्षा पर जोर देने के लिए करोड़ो का बजट खर्च करती है लेकिन आज भी सरकारी नुमांइदों की सह पर सुविधा से युक्त आश्रम शाला होने के बाद भी बच्चे नीचे जमीन पर बैठकर पढाई करने को मजबूर है एक साथ तीन तीन कक्षाएं में बैठकर पढ़ने को मजबूर है छात्र, आज आश्रम शालाओं में छात्र को कैसे बैठकर पढाई करना है शिक्षक को बताने की फुर्सत नहीं है ..जी हां हम बात कर रहे हैं छिंदवाड़ा जिलें के आदिवासी विकासखंड जुन्नारदेव ब्लाक के कटकूही बालक आश्रम की जहां पर जनजातीय कार्यविभाग संचालित बालक आश्रम है यहां पर पहली से पाचवीं तक छात्र है लेकिन इनके पढाने वाला शिक्षक के भी शिक्षा कैसे देनी है पता नहीं है . वो भी सिर्फ खानापूर्ति करता है तीन क्लास को एक साथ बैठाकर पढाई करते है। अधीक्षक तो नाम मात्र के लिऐ नियुक्त है । कभी कभार ही आश्रम शाला में रहते है अधीक्षक,यंहा आश्रम शाला चपरासी के भरोसे संचालित हो रही है ।अधीक्षक सप्ताह में एक दो दिन ही आते है। ये सब काम मंडल संयोजक एंव उच्च अधिकारी की मिलीभगत के चलत हो रहा है
आदिवासी बालक आश्रम में पढऩे वालें बच्चों का शिक्षा का स्थर बेहद कमजोर…
जी हाँ हम बात कर रहे है छिदंवाडा जिलें के जनजातीय कार्यविभाग द्वारा संचालित आश्रम शालाओं की और यंहा रहकर पढ़ने वाले आदिवासी छात्रों की जहां पर शिक्षक एंव लापरवाही अधीक्षक के कारण आज इन आदिवासी बच्चों का भबिष्य अंधकार में है। इन बच्चों का शिक्षा स्तर बेहद ही कमजोर है। आश्रम में रहकर पढ़ने वाले छात्रों को ना गिनती पढ़कर आ रही है ना उनको जोड़ घटाना आता है । इन सब के लिए जिम्मेदार है यंहा पदस्य शिक्षक जिनकी जिम्मेदारी है इन बच्चों के भबिष्य की लेकिन इनकी लापरवाही एंव उदासीनता के कारण इन आदिवासी समाज के बच्चों का भबिष्य खराब हो रहा है। और जिम्मेदार अधिकारी भी आँखें बंद करके बैठे है। शिक्षकों की लापरवाही इतनी है कि वो जब चाहे अपनी मर्जी से आते जाते हैं। और तो अधीक्षक भी यहां कभी आश्रम में नहीं रहते जिसका नतीजा है कि आज इन आदिवासी बच्चों का भविष्य अंधकार में है इन्हें अच्छी शिक्षा देने वाले शिक्षक ही लापरवाह है।
ये है कटकूही का आदिवासी बालक आश्रम
आश्रम तो हाईक्लास है लेकिन इसमें छात्रों की सुविधा की कमी है ..कारण है यहां पर नियुक्त अधीक्षक जो आदिवासी छात्रों के हक छीन रहा है उनके भबिष्य से खिलवाड़ कर रहा है। ना बच्चों को समय में नाश्ता मिलता ना उन्हें गुणवत्ता युक्त भोजन दिया जाता है।
वहीं आश्रम के बारे में जब अधिकारियों से बात की गई तो वे इसे जांच का बिषय बताकर मामला टालते नजर आए….
जनजातीय कार्यविभाग के अधिकारियों की निगरानी की कमी…
जिलें में जनजातीय कार्यविभाग द्वारा संचालित छात्रावास/आश्रम शालाओं बेहाल है ।अधीक्षक एंव शिक्षकों की लापरवाही चरम पर है लेकिन बोलने वाला एंव इनकी निगरानी करने वाले नदारत दिखाई देते है जिसका फायदा अधीक्षक उठा रहे है। कई कई महिनें तक इन छात्रावास एंव आश्रम शालाओं की निगरानी नहीं करते है मंडल संयोजक/ क्षेत्रसंयोजक
सरकारी तंत्र की विफलता के कारण…
इसे सरकारी तंत्र की विफलता मानी जाए या फिर आदिवासी लोगों का सरकारी छात्रावास/आश्रम के प्रति जानकारी की कमी जहां पर सरकार बच्चों को सुविधाओ से लैस आश्रम दे रही है और पूरी सुविधाओं के लियें लाखों का बजट दे रही है । बजट होने के बाद भी आदिवासी बच्चे को पूरी सुविधाएं नहीं मिल रही जिसमें अधीक्षक की लापरवाही ही कहा जा सकता है आदिवासी अपने बच्चों को ऐसे आश्रम में रखकर पढाई करने के लिये मजबूर हैं लेकिन इतना तो जरुर है कि विभाग की लापरवाही कभी भी बच्चों पर भारी पड़ सकती है … क्योंकि यहां बच्चों बीमार पडे रहते है लेकिन अधीक्षक आपने धर से आश्रम की देखरेख करते है।यहां के आश्रम में ऐसे होती है पढाई जहां बच्चे इधर उधार मुंह करके बैठे है और शिक्षक महोदय भी बैठे रहतें है लेकिन उनको इतनी फुर्सत नहीं कि बच्चों को लाइन से बैठा सके और उन्हें अच्छी शिक्षा दे सके यह जनजातीय कार्यविभाग की 21वीं सदी की नई शिक्षा प्रणाली है लगता है ऐसे हो रहा है आदीवासी बच्चों का विकास.
जनजाति कार्य विभाग के सहायक आयुक्त लापरवाही से आदिवासी समाज के बच्चों का भविष्य अंधकार में..
रिपोर्ट- ठा.रामकुमार राजपूत
मोबाइल-8989115284