Home DHARMA भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध अर्धनारीश्वर मंदिर …

भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध अर्धनारीश्वर मंदिर …

भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध अर्धनारीश्वर मंदिर …

पांढुर्ना जिलें के सौसर तहसील के मोहगांव हवेली में स्‍थित है शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का एकमात्र ज्योतिर्लिंग,

शिवभक्तों का उमड़ा आस्‍था का सैलाब…
By admin
20 August 2024

पंचायत दिशा समाचार

पांढुर्ना – भारत सहित कई देशों में सावन सोमवार पूरे धूमधाम एंव उत्साह से मनाया जा रहा है । सावन माह लगते ही हर शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमडऩे लगती है । भोलेनाथ को मनाने के लिए हर घर में मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की जाती है। हर मंदिरों में ओम नमः शिवाय की गुंज सुनाई पढ़ने लगती है।

ऐसा ही मंदिर पांढुर्ना जिलें के सौसर तहसील से 6 कि.मी दूर मोहगांव अर्धनारीश्वर शिव मंदिर है । मोहगांव हवेली में भगवान शंकर का मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। यहां सुबह से ही शिव भक्‍तों का तांता लगा है। शिव भक्तों का मानना हैं कि सृष्टि निर्माण के बाद शून्यकाल में सर्वप्रथम अर्धनारीश्वर स्वरुप भगवान शिव एवं देवी सती ने सृष्टि संचालन प्रतीक नर और नारी के सम्‍मिलित रूप यानी अर्धनारीश्वर स्वरुप ज्योतिर्लिंग की स्थापना पृथ्वी के मध्य भाग में की थी। यह स्थान मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र सीमा पर स्थित नागपुर से 70 किमी दूर पांढुर्ना जिले के सौंसर तहसील से 6 कि,मी पर स्थित मोहगांव हवेली नगर का अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग है।
मंदिर के गर्भ गृह के चारों ओर दरवाजे..

अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में गर्भ गृह के चारों और तीन-तीन दरवाजे हैं। यह दरवाजा अलग-अलग ज्योतिर्लिंग के नाम पर है। यहां भगवान शिव और माता पार्वती का शिवलिंग है। यह चार प्रवेश द्वार चारों धाम द्वारका, रामेश्वर, जगन्नाथपुरी और बद्रीनाथ धाम के प्रति के इस मंदिर में गर्भ गृ़ह के चारों तरफ तीन-तीन दरवाजे अलग-अलग ज्योतिर्लिंग के नाम से बने है। भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है।

शिवलिंग का आधा भाग काला और आधा गौर वर्ण का…


इस मंदिर में प्रतिवर्ष माघ मास एवं कार्तिक मास में भगवान सूर्य स्वंय अपनी किरणों से भगवान का रुद्राभिषेक करते हैं । कहा जाता है कि इस शिवलिंग का आधा भाग काले और आधा भाग गौर वर्ण का है । जो भगवान शिव और माता पार्वती के एक साथ विराजमान होने का प्रतीक है। खास तौर पर यहां श्रावण मास में भक्तों का सुबह से ही तांता लगा रहता है।
सर्प के आकार की नदी
शास्त्रों के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग सरपनि नदी के तट पर है नदी सांप के आकार में बहती है। पूरी नदी का आकार ओम जैसा है। ठीक वैसे ही मोहगांव मंदिर के पश्चिम दिशा में सर्पा नदी है जो सर्प के आकार में प्रवाहित होती है। मंदिर से दक्षिण-पूर्व दिशा में इस नदी में एक कुंड है जो कि शिवलिंग आकार का है। मान्यता है कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने सर्पा नदी के तट पर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान ने उनकी इच्छानुसार अर्धनारीश्वर के रूप में प्रकट हुए तब से यहां पर अर्धनारीश्वर भगवान ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।

लोगों की मान्यता है कि यंहा होता है कालसर्प दोष, मनोकामना पूर्ण

भक्तों की.मान्यता है कि इस मंदिर के समीप सर्प के आकार की सर्पा नदी होने की वजह से यहां कालसर्प दोष निवारण पूजा से लाभ होता है। शिव-सती का संयुक्त स्थान होने से सोलह सोमवार का व्रत, संकल्प करने व मनोकामना पूर्ण करने वाला यह पवित्र स्थल है। दूरदराज के प्रांतों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते है। मान्यता है कि मंदिर १३ वीं शताब्दी से है। नागपुर के रघुजी राजा, देवगढ़ के राजा भोसले और राजा दलपत ने शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था स्थापित ज्योतिर्लिंग दैत्य गुरु शुक्राचार्य के तप का परिणाम है। मंदिर अत्यंत प्राचीन होने का प्रमाण भी मिलते हैं।

हिन्दू धर्म शास्त्रों, पुराणों में भगवान शंकर के 21 अवतार तथा पृथ्वी पर बारह ज्योतिर्लिंग सनातन स्थापित होने का उल्लेख मिलता हैं। बारह ज्योतिर्लिंग के स्थान सर्व विदित एवं प्रचलित हैं, भगवान शिव के 12 ही ज्योतिर्लिंग है, यह मान्यता सर्व सामान्य हो गई थी, साक्ष्यों के आधार पर अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मोहगांव हवेली का ही है ये जानकारी मिली।
धर्मशास्त्रों में साढे बारह ज्योतिर्लिंगों के उल्लेखित स्थान वर्णन के संबंध में संक्षिप्त में कहा जाए तो यह मिलता हैं कि समुद्र तट पर दो, पर्वत शिखर पर चार, नदी तट पर साढे तीन तथा समतल प्रदेश में तीन ऐसे भगवान महादेव के साढे बारह ज्योतिर्लिंग विश्व में स्थापित हैं. जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिग नदी तट पर स्थापित है।