छिदंवाडा के बादल भोई म्यूजियम के नए भवन दूर से ही नजर आएगी ये झांकी…
स्थापना के 71 साल बाद प्रशासन के आया याद आयें आदिवासी, पुन: सजाने-संवारने में जुटे आदिवासी कलाकार…
By admin
2 August 2024
पंचायत दिशा समाचार
छिंदवाड़ा (म.प्र) – जिलें के बादलभोई आदिवासी संग्रहालय के नए भवन में जैसे ही पर्यटक प्रवेश करेंगे, दूर से ही उन्हें चार सौ साल पुराने गोंडवाना साम्राज्य की निशानी देवगढ़ के किले का दीदार होगा। स्थापना के 71 साल बाद सरकार ने इस संग्रहालय की सुधि ली है। नए भवन में आदिवासी कलाकृतियों और संस्कृति को दीवार पर उकेरा जाने लगा है।
अंतराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 18 मई को राज्य की इस धरोहर को हर जिलेवासियों को याद करना होगा।
इस संग्रहालय की स्थापना 20 अप्रैल 1954 को हुई थी 8 सितम्बर 1997 को इस संग्रहालय का नाम परिवर्तित कर बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय कर दिया गया। 9 एकड़ 75 डिसमिल क्षेत्र में फैले परिसर में मौजूद संग्रहालय 14 कक्ष और 4 गैलरियों में संचालित है । इस धरोहर को भव्य स्वरूप देने तीन साल पहले 33 करोड़ रुपए का नया भवन मंजूर किया गया। वर्तमान में यह भवन का काम अभी चल रहा है जल्द ही काम पूरा हो जायेगा । शेष डेकोरेशन, फिनिशिंग और आदिवासी कलाकृतियों को सजाने-संवारने ट्राइफेड भोपाल की टीम कर रही है।
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संग्रहालय में दिखते हैं आदिवासियों की पुरानी जीवनशैली के जीवंत दृश्य
इस संग्रहालय में आदिवासी जनजाति बैगा, गोंड, भारिया समेत अन्य जन जातियों की जीवन शैली एवं सांस्कृतिक धरोहर, प्रतीक चिन्हों, और विविध कला शिल्पों का प्रदर्शन किया गया है। उनके चिलम, बैलगाड़ी, गुल्ली का तेल निकालने का यंत्र, वाद्य यंत्र ढोलक, इकतारा, मृदंग, टिमकी, चटकुले, पानी पीने का तुम्बा, आटा पीसने चकिया, घट्टी, उडिय़ा खेती, पातालकोट,कपड़े, जूतेे, रस्सी, घुरलु की छाल, मछली पकडऩे से संबंधित उपकरण झिटके, बूटी, मोरपंख का ढाल, मेला, झंडा (जेरी) लगाना,मदिरा निर्माण,कडरकी, चन्दरहार, हमेर जेवर, कोरकू जनजाति का मरोणपरांत स्तम्भ, लोह निर्माण और मेघनाथ के प्रदर्शन के जीवंत दृश्य वास्तविक जैसे दिखते हैं।
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पर्यटकों की पहली पसंद होगा संग्रहालय…
जिलें में आयें कोई भी मेहमान की पहली पसंद होगा यह आदिवासी संग्रहालय है। वर्तमान में निर्माण कार्य होने से दर्शक संख्या कम हो गई है लेकिन भविष्य में नया भवन तैयार होते ही दर्शक बढ़ जाने का अनुमान संग्रहालय के कर्मचारी लगा रहे हैं। इस स्थल पर जनजातीय शोधकर्ता दल, राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ अधिकारी आते रहे है, जिनका 1954 से विजिटर बुक में रिमार्क अंकित है।
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इनका कहना है…
बादल भोई संग्रहालय 71 साल से आदिवासी संस्कृति, सभ्यता और जीवनशैली से जिले वासियों और शोधकर्ताओं को अवगत करा रहा है। अब जल्द ही यह नए स्वरूप होगा।
रिपोर्ट ठा.रामकुमार राजपूत