
छात्रावास अधीक्षक छात्रावास में नहीं रहते जिला मुख्यालय से करते हैं आना-जाना…?
पालाखेड के छात्रावास के गेट पर लगा है ताला कर्मचारी और अधिकारी नदारत…?
छिंदवाड़ा/ जिले के जनजाति कार्य विभाग द्वारा संचालित छात्रावास इन दिनों भगवान भरोसे संचालित हो रहे हैं ऐसे ही मामला देखने को मिला मोहखेंड ब्लॉक के पालाखेड सीनियर बालक छात्रावास में जंहा दिन में भी छात्रावास में ताला लगा रहता है यंहा पदस्थ अधीक्षक अजय टांडेकर जिला मुख्यालय से आना जाना करते है जब उनका मूड होता है आ जाते है एक चपरासी के भरोसे छात्रावास संचालित होता है, यंहा रात्रि में भी कभी अधीक्षक रोकते नही है, यदि कभी छात्र के बीमार होने पर फोन से सूचना के बाद भी नहीं पहुंचे अधीक्षक तो छात्र रातभर परेशान होते रहते है आधी रात को इनकी समस्या सुनाने वाला कोई नहीं होता है एक चपरासी के भरोसे इन दिनों पालाखेंड का छात्रावास चल रहा है

अधीक्षक अजय टाडेकर रखता है राजनेताओं से संपर्क…
जनजाति कार्य विभाग द्वारा संचालित छात्रावास में इन दोनों लगता नहीं की कोई शिक्षक है ऐसा लगता है कि कोई राजनेता ही इन छात्रावास आश्रमों का संचालन कर रहा है कभी किसी अधीक्षक की शिकायत करो तो बोलता है कि मैं राजनीति पकड़ रखता हूं कोई कहता है कि मैं फलानी पार्टी से संपर्क रखता हूं मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता यदि ऐसा ही चला रहा तो इन आदिवासी समाज के बच्चों के भविष्य कैसे उज्जवल होगा, आखिर उनके भविष्य से कब तक ऐसे (शिक्षक) अधीक्षक उनकी जिंदगी से खिलवाड़ करते रहेंगे यदि बच्चों को अच्छी शिक्षा अच्छा,स्वास्थ्य,अच्छा भोजन नहीं मिला तो इन आदिवासी समाज के छात्रों का कैसे विकास होगा! आखिर अपने धर से मां-बाप को छोड़कर इन्हीं अधीक्षकों को भरोसे छात्रावास में रहने के लिए यह बच्चे आते हैं लेकिन जब छात्रावास अधीक्षक ही ऐसा लापरवाह होगा तो आदिवासी छात्रों को छात्रावास में मूलभूत सुविधा कैसे मिल सकती है…

जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के छात्रावास एवं आश्रम शाला में नहीं रहते अधीक्षक….
जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचलों तक के छात्रावासों में मनमानी का आलम व्याप्त है, जिससे छात्रावासी बच्चों को रात में अक्सर परेशान होना पड़ता है।
कुछ इसी तरह की समस्या मोहखेड ब्लॉक में स्थित अनुसूचित जाति सीनियर बालक छात्रावास पालाखेड में देखने को मिली जंहा बच्चों को ताला बंद कर रखते है और यंहा अधीक्षक एक दो दिन में जब उनकी मर्जी होती है आ जाते हैं…
शासन का नियम है की रात्रि के समय छात्रावास अधीक्षक अवश्य रहे अपने छात्रावास में…
विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार छात्रावास अधीक्षकों को छात्रावास में ही रहने का प्रावधान है, लेकिन जिला मुख्यालय सहित जिले के ग्रामीण अंचलो में स्थित छात्रावासों का आलम यह है कि यहां छात्रावास में अधीक्षक नहीं रहते, वहां केवल भृत्य निवास करते हैं, जो रात्रि में किसी तरह की समस्या होने पर समाधान नहीं कर पाते। रात में किसी प्रकार की समस्या होने पर अधीक्षकों का फोन भी नहीं उठता, यदि किसी तरह फोन उठ भी गया तो वह रात्रि के समय छात्रावास में जाना उचित नहीं समझते।
जिले मुख्यालय सहित आदिवासी अंचल के अन्य विकासखंडों में संचालित छात्रावासों का आलम भी ऐसा ही है, इन दिनों स्कूल में जाकर पढ़ाई न करने पड़े इसलिए शिक्षक इन दिनों छात्रावास में अधीक्षक बनने के लिए चढ़ावा दे कर अधीक्षक बनकर मोटी रकम कमा रहे हैं शिक्षकों को ही छात्रावास अधीक्षकों बना दिया गया है
मोहखेंड ब्लॉक प्रभारी क्षेत्र संयोजक मनीष बोरकर का कहना क्या है…..
जब इस विषय में हमने फोन पर जनजाति कार्य विभाग के क्षेत्र संयोजक मनीष बोरकर से बात किया तो उनका कहना है कि आप जियोटेक से फोटो खींचकर पहुंचाइये मैं इसकी जांच कराऊंगा लेकिन आप समझ सकते हो कि जब अधिकारी क्षेत्र में ना जाकर जिला मुख्यालय कार्यालय में ही अपनी ड्यूटी बजा रहे हैं तो फिर इन छात्रावास आश्रम शालाओं का निरीक्षण करेगा कौन इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि इन दोनों छिंदवाड़ा जिले में संचालित छात्रावास एवं आश्रम शाला सब भगवान भरोसे चल रही हैं…?






