स्कूल में बच्चों को पढाने की वजह छात्रावास हुआ आश्रम में बच्चों की देखरेख में लगे शिक्षक
छिदंवाडा– जिले के शिक्षक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के बजाए छात्रावास व आश्रमों में बच्चों के देख-रेख में लगे हुए हैं। एक ओर जहां स्कूलों में सहायक शिक्षक से लेकर प्रधान पाठक तक के कई पद खाली पड़े हुए हैं वहीं इतनी अधिक संख्या में पिछले लंबे समय से शिक्षकों को छात्रावास व आश्रमों का जिम्मा देकर रखा गया है।अब स्थिति की बात करें तो जिले में संचालित होने वाली छात्रावास व आश्रम जनजातीय कार्यविभाग के अधिन संचालित होता है जिले में कुल मिलाकर 187 छात्रावास व आश्रम संचालित होता है, लेकिन इसमें देखा जाए तो 13 छात्रावासों में नियमित अधीक्षक की भर्ती हो पाई है। यह कहानी पिछले कई सालों से चल रही है।
जिसके कारण स्कूलों में अध्यापन कार्य प्रभावित हो रहा है। उक्त छात्रावासों में अधीक्षक बनकर बैठे शिक्षकों पर गौर किया जाए तो सहायक शिक्षक , प्राथमिक शिक्षक , माध्यमिक शिक्षक, उच्च वर्ग शिक्षक और प्रधान पाठक जैसे पदों में पदस्थ शिक्षक अधीक्षक का कार्य कर रहे हैं। हर साल परीक्षा के पहले खासकर जिले के ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र में स्थित सरकारी स्कूलों से विषय विशेषज्ञ और शिक्षकों की कमी को लेकर छात्र जनजातीय कार्यविभाग और जिला प्रशासन से शिक्षक उपलब्ध कराने की मांग करते हैं। लेकिन यह मांग पूरी नहीं हो पाती है।अंत में वहां पढऩे वाले छात्रों को जैसे-तैसे अपने हिसाब से ही तैयारी कर परीक्षा में बैठना पड़ता है। जिले के कई सरकारी स्कूलों में तो विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी है । जिसके कारण छात्र इन बिषयों में बहुत कमजोर रहतें है ।और उनका परीक्षा परीणाम अच्छा नहीं आता है। जिसके कारण कई आदिवासी छात्र/ छात्राओं ने पढाई तक छोड दी है। कारण है आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में इन बिषयों को पढने वाले शिक्षक ही नहीं है। शिक्षकों की पोस्टिंग तो होती है ।लेकिन सब सेटिंग करके शहरी क्षेत्र में अटैचमेंट एंव ट्रासफर करा लेते है ।इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में इन बिषयों के शिक्षक ही नहीं रहते है । जैसे अग्रेंजी,गणित, विज्ञान,संस्कृत बिषय पढाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। इसकी भी शिकायत कई बार आदिवासी संगठनों ने एंव छात्रों ने किया लेकिन इन पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। और लंबे समय बाद भी इन स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की गई । और कई स्कूलों में संबंधित विषय के शिक्षक ही नहीं मिले।
ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में हो रही परेशानी..
जिलें के आदिवासी ब्लाकों में पिछले कई सालों से छात्रावासों में शिक्षक अधीक्षक के रूप में पदस्थ हैं। इनको आज तक स्कूलों में वापस नहीं भेजा गया। जबकि देखा जाए तो शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए पिछले चार-पांच सालों से जनजातीय विभाग अतिथि शिक्षकों का सहारा ले रहा है। और अतिथि शिक्षक के रूप में हर साल अतिथि शिक्षकों की भर्ती की जाती है।लेकिन जनजातीय कार्यविभाग के सहायक आयुक्त ने जिला मुख्यालय की आश्रम शालाओं में एंव शहर के आसपास के स्कूलों में सेकडों शिक्षक अतिशेष होने के बाद भी नौकरी कर रहे है।
नेताओं एंव विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कर छात्रावास में बन जाते है अधीक्षक…
जिलें में बर्षों से नेताओं एंव विभागीय अधिकारियों से सांठगांठ कर कई शिक्षक पढाना छोड छात्रावास में अधीक्षक बन जातें है। जिसके कारण आज जिलें के ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूल शिक्षक विहीन है। और इन ग्रामीण क्षेत्र में छात्र के पढाने के लिए शिक्षक ही नहीं है।और कई शिक्षक अटैचमेंट पर आज भी छात्रावास में अधीक्षक के पद पर पदस्य है। लेकिन उनकों हटाने का कभी नहीं सोचा है। कई अधीक्षक स्कूल छोड बीस बीस सालों से अधीक्षक के पद पर पदस्य है। लोगों का मानना है कि ऐसे संलग्न शिक्षकों को अगर मूल कार्य में लगाया जाए तो कई स्कूलों का भला हो जाएगा। पर फिक्र किसी को नहीं है।
आज तक इन्होंने भी नहीं की आपत्ति…
शिक्षक अधीक्षक बनकर लाल हो रहे हैं इसका ठोस कारण यह है कि अधीक्षक पद पर पदस्थ किसी भी शिक्षक ने अपने वापसी के लिए कोई आवेदन विभाग को नहीं दिया है जिसमें यह कहा गया हो कि उनका मूल कार्य शिक्षा देना है,
बच्चों को शिक्षित करना है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ये शिक्षक अपने मूल कार्य पर वापस क्यों नहीं आना चाहते हैं। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि अधीक्षक बनने के लिए काफी प्रयास किए जाते हैं और बने रहने के लिए तो और भी प्रयास किए जाते हैं।
स्कूल में एक ही शिक्षक उसें भी बना दिया अधीक्षक…
जिलें के हर्रई विकासखंड की ऐसे कई स्कूल है। जंहा स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं है।ऐसा ही देखने को मिला प्राथमिक शाला सगोनिया जंहा रवि डेहरिया को सुरलाखापा बालक छात्रावास का अधीक्षक दिया जिसके कारण सगोनिया प्राथमिक स्कूल अब शिक्षक विहीन हो गई है ।लेकिन जिलें में बैठे सहायक आयुक्त को लगता है। उन्हें इन स्कूलों में पढाई करने वाले छात्रों की भविष्य की चिंता नहीं है।इसलिए ऐसे आदेश निकल रहे है।
आखिर शिक्षक कब तक छात्रों के भबिष्य से खिलवाड़ करते रहेंगे
रिपोर्ट- ठा.रामकुमार राजपूत
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