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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्यों नहीं दूर कर पा रही किसानों की समस्या..

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्यों नहीं दूर कर पा रही किसानों की समस्या..

By admin

25,2024

(पंचायत दिशा समाचार)

भोपाल-प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 18 फरवरी, 2016 को शुरू की गई थी. यह योजना मोबाइल तकनीकी आधारित है.
भारतीय किसान संकटों के बीच काम करते हैं. कभी असमय बारिश, कभी सूखा तो कभी बाढ़, किसानों की अनुमानित पैदावार पर असर डालते हैं. किसानों को प्राकृतिक आपदाएं भी देखनी पड़ती हैं. इसके कारण उनकी फसलों को नुकसान पहुंचता है. कृषि आय पर भी असर पड़ता है.

इस योजना में पहले की योजनाओं की तरह ऊंची प्रीमियम की दर नहीं रखी गई है.
आवश्यक था कि किसानों की उपज को क्षति पहुंचने की स्थिति में कोई व्यवस्था की जाए ताकि वो अगली खेती कर सकें. इस समस्या का जो एक उचित हल निकाला गया वह ‘फसल बीमा योजना’ के रूप में सामने आया.

भारत में फसल बीमा की शुरुआत तो 1972 में ही हो गई थी. सरकार ने 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व में भी एक फसल योजना की शुरुआत की थी. आगे चलकर सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम (1999), संशोधित नेशनल एग्रीकल्चरल इंश्योरेंस स्कीम (2010) और वेदर बेस्ड क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम जैसी फसल बीमा योजनाओं की शुरुआत की थी.

यह अलग बात है क‍ि पारदर्शिता में कमी, बीमा भुगतान में देरी और प्रीमियम की अधिकता की वजह से किसानों का विश्वास कभी भी फसल बीमा योजना में नहीं बन सका है. इन सभी समस्याओं को देखते हुए मोदी सरकार ने एक नई फसल बीमा योजना ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, 2016’ की शुरुआत की.


मोबाइल तकनीकी आधार‍ित है योजना.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 18 फरवरी, 2016 को शुरू की गई थी. यह योजना मोबाइल तकनीकी आधारित है. इस योजना के सफल क्रियान्वयन में क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट, डिजिटल रूप से भूमि ब्योरा और भूमि का खातों से जुड़ा होना मदद पहुंचाते है.

इस योजना में पहले की योजनाओं की तरह ऊंची प्रीमियम की दर नहीं रखी गई. इस योजना के तहत खरीफ की फसल पर 2%, रबी की फसल पर 1.5% और बागवानी एवं वाणिज्यिक फसलों पर 5% प्रीमियम की दर है. बाकी का बचा हुआ प्रीमियम केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार वहन करते हैं.

यह बीमा एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी, बैंग और नि‍जी इंश्योरेंस कंपन‍ियों की मदद से किया जाता है. इस योजना के अन्तर्गत सब्सिडी पर कोई सीमा तय नहीं है. कोई भी किसान जो कृषि का कार्य कर रहा है वह इस योजना का लाभ ले सकता है.
ये हैं बड़ी समस्‍याएं
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की एक बड़ी समस्या प्रीमियम के मुकाबले भुगतान का कम होना है. हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2018 के खत्म हुए खरीफ फसल के दौरान कुल प्रीमियम 20,747 करोड़ रुपये का जमा किया गया.
इस दौरान किसानों ने 12,867 करोड़ रुपये का दावा बीमा कंपनियों पर भुगतान के लिए किया. पर, बीमा कंपनियों ने किसानों को महज 7,698 करोड़ रुपये का भुगतान किया जो कि किए गए दावे से 5,171 करोड़ रुपये कम है.
अगर कुल जमा प्रीमियम और भुगतान के बीच का अंतर देखें तो यह अंतर 13,050 करोड़ रुपये का बनता है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के आधिकारिक दिशानिर्देशों को मानें तो किसानों का किया गया दावा फरवरी 2019 तक निपट जाना चाहिए था. पर, निजी बीमा कंपनियां किसानों के दावों पर भुगतान नहीं कर रही हैं.

नि‍जी इंश्योरेंस कंपन‍ियां अधिक लाभ अर्जित कर रही हैं. सरकार ने दावा भुगतान में देरी पर बीमा कंपनियों पर 12% जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया हुआ है. पर, सरकारी लापरवाही के चलते भी बीमा कंपनियां किसानों के दावों का भुगतान नहीं कर रही हैं.
उठ रही है आवाज
यही कारण है कि तमाम कृषि संगठन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को सरकार और निजी बीमा कंपनियों के बीच साठगांठ का आरोप लगा बीमा योजना में बड़े बदलाव के लिए आवाज उठा रहे हैं. सरकार ने भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बड़े बदलाव के संभावित संकेत जारी कर दिए हैं. संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पूरा प्रीमियम सरकार के जरिए ही भरा जाए.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर एक बड़ी चिंता यह भी है कि हर वर्ष इस योजना के दायरे में किसानों की संख्या में एक बड़ी गिरावट भी देखी जा रही है. वर्ष 2016-17 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत कुल 5 करोड़ 80 लाख किसानों ने पंजीकरण कराया था. लेकिन, यह संख्या 2017-18 में घटकर 4 करोड़ 70 लाख हो गई है. यह आंकड़ा साफ करता है कि फसल बीमा योजना से किसान संतुष्ट नहीं है.

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