Home CITY NEWS जिले के आदिवासी समाज आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा…

जिले के आदिवासी समाज आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा…

जिले के आदिवासी समाज आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा…!

आदिवासी विधायकों के क्षेत्र में शिक्षा बेहाल..।

जिलें में आदिवासी प्रतिनिधि होने के बाद भी क्यों नहीं सुधरी इस वर्ग की हालत….

रिपोर्ट-ठा.रामकुमार राजपूत
दिनांक-23/07/2023

पंचायत दिशा समाचार (छिंदवाड़ा)- छिदंवाडा जिलें के आदिवासियों के विकास के लिये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सहित बडे बडे मत्री नेताओं ने छिदंवाडा जिलें में खूब ढिंढोरे पीटा गया । लेकिन उसकी सच्चाई देखना है तो जिलें के कई गांव ऐसे है जंहा आज भी आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के मोहताज है ,न तो अब तक सड़क ,पानी,ना ही बुनियादी शिक्षा यंहा के बच्चों के मिल रही है। जबकि जिलें की जनसंख्या में आदिवासियों की भागीदारी 37 फीसदी है। इस वर्ग में पांच फीसदी संपन्न को छोड़ दिया जाए तो बड़ी आबादी हर साल रोजगार की तलाश में पलायन कर रही है। तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद अधिकांश आदिवासी गांव पेयजल,इलाज,सडक़ और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं के मोहताज है।

राजा कमलेश प्रताप शाह ने कहा मेंने विकास के लिये पार्टी बदली, पर कमलेश प्रताप शाह ने क्या 10 बर्षों में अपने क्षेत्र में किया है विकास..

जी हां हम बात कर रहे है अमरवाडा विधायक राजा कमलेश प्रताप शाह की जो 10 सालों से अमरवाडा से विधायक है। लेकिन क्या राजा साहब ने आपने महल से निकलकर कभी क्षेत्र के विकास के लिए आवाज उठायें है ।ये कभी देखने को नहीं मिला । इस क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है । आज भी यंहा के आदिवासी समाज को रोजी रोटी के लिए काम की तलाश में शहर शहर भटक रहे है ।उन्हें काम की तलाश में बाहर जाना पडता है ।इस क्षेत्र में आज भी आदिवासी समाज के लोगों को काम के लिए पलायन करना पडता है। विधायक जी राजा कमलेश प्रताप शाह के क्षेत्र में आज शिक्षा बेहाल है यंहा स्कूलों में पढाने के लिए शिक्षक नही है कई स्कूल शिक्षक विहीन है लेकिन राजा साहब ने कभी भी इन गरीब आदिवासी बच्चों के लिए आवाज नहीं उठाई है। इसी कारण इनके ग्रामीण क्षेत्र से बिना रोकटोक स्कूलों से शिक्षक अटैचमेंट करते रहे और शहरों के पास पदस्थ होते रहे।लेकिन राजा साहब ने कभी आपने समाज के बच्चों के बिषय क्यों नहीं सोचा क्यों ऐसे शिक्षकों अटैचमेंट होने दिया ये बडा सवाल है ।

जिलें के जनजातीय कार्यविभाग के अधिकारी/ कर्मचारी खुलकर कर रहे आदिवासी बच्चों का शोषण फिर भी जनप्रतिनिधि नहीं उठाते आवाज…?

जिलें में आदिवासी समाज के बच्चों पर शोषण की खबर इन दिनों खूब सुर्खियों में चल रही हैं। जिलें के छात्रावास/आश्रमशालाओं में आदिवासी बच्चों की मौत हो रही है। तो कही छात्रावास में रहने वाले बच्चों को प्रताडित किया जा रहा है। और इन आदिवासियों के बच्चों की योजनाओं में पलीता लगाया जा रहा है। जिलें में जनजातीय विभाग द्वारा संचालित छात्रावास आश्रम शालाओं में रहने वाले बच्चों को संतुलित भोजन नहीं मिलने की खबर आयें दिनों सुनने को मिलती है । छात्रावास में रहने वालें आदिवासी बच्चों को छात्रावास में भोजन अच्छा नहीं मिलने के लिए कई बार छात्र/छात्रों के आंदोलन भी कर चुके है ।लेकिन ऐसे अधीक्षकों पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। लेकिन आदिवासी समाज के हितैषी कहने वाले ये जनप्रतिनिधि एंव विधायकों ने कभी इन आदिवासी बच्चों की आवाज विधानसभा में नहीं उठाई ना ही ऐसे अधिकारी/कर्मचारियों की शिकायत नहीं किया है।इसलिए जिलें के आदिवासी बच्चों के साथ ऐसी धटना हो रही है।
अमरवाड़ा विधानसभा के आदिवासी समाज आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित…आखिर क्यों…?

आदिवासियों के जीवन स्तर सुधारने के लिए हमेशा आवाज उठती रही है। इस पर सरकार शिक्षा, सडक़,बिजली,पानी समेत तमाम मदों में करोड़ों-अरबों रुपए का बजट दे रही है। इसके बावजूद भी कहीं न कहीं कोई ऐसी कमी है,जिससे यह समाज अपेक्षा के अनुरूप तरक्की नहीं कर पा रहा है। इनकी समस्याओं को देखना तो कलेक्ट्रेट में हर मंगलवार कलेक्टर जनसुनवाई में देखा जा सकता है।
आदिवासी समाज की सबसे बड़ी समस्या रोजगार है। अमरवाड़ा,हर्रई,तामिया समेत अन्य इलाकों में बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं तो वहीं गांवों में पेयजल,सडक़,बिजली और स्वास्थ्य समेत मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। यह मुद्दे छिंदवाड़ा के आदिवासी विधायक के कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाते हैं। आदिवासी समाज की अपनी गौरवशाली संस्कृति और समृद्ध परम्परा है तो वहीं शिक्षा,रोजगार,पेयजल,सडक़ जैसे मुद्दे चुनौती है। इस पर मैदानी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। समाज को जागरूक करके ही हम संपन्नता की ओर ले जा सकते हैं।

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