छिदंवाडा के जनजातीय कार्यविभाग द्वारा संचालित छात्रावासों/ आश्रम शाला में 15/20 वर्ष से बने बैठे हैं अधीक्षक..

जनजातीय कार्यविभाग छिदंवाडा में कमीशन के दम पर दिया जाता हैअधीक्षकों का प्रभार
रिपोर्ट- ठा.रामकुमार राजपूत
दिनाँक-14/07/2024
स्थान- छिदंवाडा म.प्र
छिदंवाडा (पंचायत दिशा समाचार )-जिले में संचालित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रावासों में कमीशन के आधार पर अधीक्षकों को प्रभार दिए जाने का खेल चल रहा है। इस खेल में शासन के नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है, लेकिन कमीशन के खेल के कारण कोई जांच कार्रवाई नहीं हो पा रही है। छात्रावासों में अधीक्षकों के प्रभार के संबंध में शासन द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी अधीक्षक को तीन वर्ष से अधिक किसी भी छात्रावास का अधीक्षक का प्रभार न दिया जाए।
जैसे ही किसी अधीक्षक का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होता है, उसे विद्यालय में पढ़ाने के लिए वापस किया जाए। और पुन: कम से कम तीन वर्ष के बाद ही किसी छात्रावास के अधीक्षक पद का प्रभार सौंपा जाए। लेकिन जिले में कमीशन के खेल के कारण इस नियम का जमकर माखौल उड़ाया जा रहा है, जिला मुख्यालय में ही कुछ छात्रावास अधीक्षक/अधीक्षिका ऐसे हैं जो पिछले 10 से 20 वर्षों से अधीक्षक के पद पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं, और सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग द्वारा ऐसे अधीक्षकों को हटाने के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
क्या है नियम
आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग मध्यप्रदेश शासन के पत्र क्रमांक/छात्रावास/164/2017/23255 के माध्यम से प्रदेश के छात्रावास अधीक्षकों की पूर्णकालिक संविदा अधीक्षकों की व्यवस्था के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए गए थे। 3 वर्ष की पदस्थापना के उपरांत अधीक्षकों/संविदा अधीक्षकोंं/संविदा शाला शिक्षकों को स्कूलों में वापस पदस्थ किया जाए और उसके बाद कम से कम तीन साल उपरांत ही पुन: छात्रावास/आश्रमों में पदस्थ किया जाए।
जनजातीय कार्यविभाग द्वारा संचालित छात्रावास/आश्रम शालाओं में 70 फीसदी से ज्यादा अधीक्षक अन्य वर्ग के..
आदिवासी विकास विभाग के अंतर्गत जिले में सेंकडों छात्रावास संचालित हैं, वहीं जिला मुख्यालय में करीब 20 -30 छात्रावास संचालित हैं। सूत्रों की बात माने तो जिले में करीब 70 फीसदी छात्रावासों में अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग से परे हटकर अन्य वर्ग के अधीक्षक पदस्थ किए गए हैं। अकेले जिला मुख्यालय की बात करें तो एक दर्जन छात्रावासों मेंं से करीब 6/7 छात्रावासों यानि पचास फीसदी से अधिक छात्रावासों में सामान्य वर्ग के अधीक्षक पदस्थ किए गए हैं।
नियम 3 वर्ष को, जमें है 20 वर्ष से अधिक समय से आखिर क्यों
छात्रावासों में अधीक्षकों के प्रभार के संबंध में शासन द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी अधीक्षक को तीन वर्ष से अधिक किसी भी छात्रावास का अधीक्षक का प्रभार न दिया जाए। जैसे ही किसी अधीक्षक का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होता है, उसे विद्यालय में पढ़ाने के लिए वापस किया जाए। और पुन: कम से कम तीन वर्ष के बाद ही किसी छात्रावास के अधीक्षक पद का प्रभार सौंपा जाए। लेकिन जिला मुख्यालय में दर्जनों ऐसे अधीक्षक है दस एंव बीस सालों से एक ही जगह पदस्थ है उदाहरण के लिए आदिवासी बालक आश्रम मनसरोवर छिदंवाडा में टी.एस.परानी के अधीक्षक , को लगातार करीब २० वर्ष से छात्रावास के अधीक्षक का प्रभारी बनाया गया है, विभागीय सूत्र बतातें हैं कि यह सब कमीशन के दम पर चल रहा है। इसके साथ ही जिला मुख्यालय के ही पोस्ट मैट्रिक अनुसूचित जनजाति छात्रावास में पदस्थ अधीक्षक पिछले करीब 10/15 वर्ष से लगातार जिला मुख्यालय के छात्रावासों में ही अधीक्षक के पद पर अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं।
नियम विरूद्ध कर दिया जाता है स्थानांतरण…
छात्रावासों में अधीक्षक पद पर नियुक्ति एवं स्थानांतरण के मामले में लंबा खेल जनजातीय कार्यविभाग में चल रहा है। सूत्रों की बात माने तो यहां सुविधा शुल्क के आगे नियमों की बलि चढ़ाई जा रही है, इसका एक और उदाहरण सामने यह है कि संविदा अधीक्षकों का स्थानांतरण एक छात्रावास से दूसरे छात्रावास में नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद छात्रावास में ऐसे कई अधीक्षक है जो इधर से उधर स्थानांतरण कर छात्रावास में पदस्थ कर दिया गया।
रामकुमार राजपूत
प्रधानसंपादक-पंचायत दिशा समाचार
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