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कब सुधरेगी छात्रावास की व्यवस्था?

कब सुधरेगी छात्रावास की व्यवस्था?

मध्यप्रदेश के छिंदंवाडा जिले में छात्रावास की स्थिति बदहाल हो गई है। आदिवासी बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। । बच्चे गंदगी और बदबू के बीच पढ़ने को मजबूर हो गए हैं।

बालक छात्रावास मोरकुंड 1972 से संचालित हो रहा है ।लेकिन आज भी पुराने जर्जर भवन में 50 सीटर छात्रावास संचालित किया जा रहा है। भवन में स्टील की सीट की छत बनाई गई है जो गर्मी में यंहा बच्चों का रहना मुश्किल होता है दो कमरें के भवन में 50 बच्चों रहते है। जो एक पंलग में दो तीन रहने को मजबूर है । सब्जी के लिए स्टोर रूम है पर जमीन पर बिखरी पड़ी दिखाई दे रही है। कीचन रूम तो आग के धुंए से काला पड़ा है। एक सिलेंडर चूल्हा है,। लेकिन यंहा आज भी लकडी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है ।जिससें कमरें में धुँआ ही धुँआ देखता है। हॉस्टल के पिछले हिस्से में शौचालय बनें हुए है ।दो तीन शौचालय को 50 बच्चों इस्तेमाल करते है।

छात्रावासों में भारी बदहाली की व्यवस्था…

हॉस्टल मोरकुंड स्कूल परिसर में ही संचालित होता है। । दो कमरे हैं जिसमें 50 बच्चों को रखा जाता है। इसी भवन में कई सालों से छात्रावास संचालित किया जा रहा है। भवन की हालात, कमरे और छत की स्थिति को देखकर लगता है छात्रावास के बच्चों के अलावा दूसरा कोई आदमी एक दिन भी नहीं गुजार सकता है। छात्रावास में आदिवासियों के बच्चे हैं। सरकार ने रहने के लिए प्रबंध किया है। स्कूल में पढ़ना है तो व्यवस्था कितनी भी बदत्तर हो रहना तो पड़ेगा। छात्रावासों में भारी बदहाली की व्यवस्था सुधारने की जरूरत है।
खाने में मिलती है सोयाबीन बड़ी और दाल


जनजातीय कार्यविभाग द्वारा संचालित बालक छात्रावास मोरकुंड के बच्चों पूछा गया कि कौन-कौन सी सब्जी बनाते हैं। बच्चों ने बताया कि यहां एक समय सोयाबीन बड़ी आलू की सब्जी और दूसरा समय दाल बनाते हैं। कभी-कभी आलू चना की सब्जी बनती है। बच्चों के खाना के लिए प्रतिमाह प्रति बच्चे 15 सौ रूपये शासन से मिलती है। लेकिन 15 सौ रूपये में सिर्फ बच्चों को सोयाबीन बड़ी और दाल ही नसीब होती है। 50 सीटर छात्रावास में 15 सौ रूपये प्रति बच्चे की दर से 75 हजार रूपये बालक छात्रावास मोरकुंड में शासन से राशि आती है। लेकिन बच्चों को सोयाबीन बड़ी और दाल खिलाते हैं, बाकी पैसे कौन खा जाता है ये जांच का विषय है। जिलें में संचालित छात्रावास/आश्रम शालाओं को देखने के लिए अधिकारी, जनप्रतिनिधियों को यह सब देखने की फुर्सत कहां है। इसी कारण बच्चे अव्यवस्था की दंश झेल रहे हैं।
गरम पानी के लिए लगी सौर प्लेट भी खराब

आदिवासी छात्रावास की पड़ताल में अव्यवस्था का अंबार दिखाई दिया। गरम पानी के लिए लगाई गई सौर्य पैनल बंद पंडी है हास्टल में गरम पानी के लिए सौर प्लेट लगाई गई है। छात्रों ने बताया कि छात्रावास में व्यवस्था नहीं होने के कारण स्कूल की छत में सौर प्लेट लगाई गई है। वो भी बंद है । सौर प्लेट खराब है। कोई काम नहीं आ रहा है। आदिवासी समाज भी शिक्षा को लेकर गंभीर है। सामाजिक मंचों में शिक्षा की अव्यवस्था की आवाज उठाती है। वर्तमान शिक्षा नीति की खुलकर विरोध करते हैं, ज्ञापन सौंपते हैं, समाज की मांग को आदिवासी अधिकारी, सांसद, विधायक, मंत्री भी नहीं सुनते हैं। समस्या सुलझने के बजाय उलझी रहती है।

आदिवासी विधायक, जनपद अध्यक्ष, जिला पंचायत, सहायक आयुक्त होने के बाद भी …?

आदिवासी समाज के आदिवासी, जनपद अध्यक्ष आदिवासी, जिला पंचायत अध्यक्ष आदिवासी, अधीक्षक हरिजन ,सहायक आयुक्त आदिवासी समाज के होने के बाद भी छात्रावासों की बदहाली का सुधार नहीं हो रहा है। छात्रावासों की व्यवस्था सुधारने जिम्मेदार हाथ आगे नहीं बढ़ाते है। कब सुधरेगी छात्रावास की व्यवस्था, कौन सुधारेगा छात्रावास की व्यवस्था, कितने दिन पुराने जर्जर भवनों में भेड़ बकरियों की तरह आदिवासी बच्चे रहेंगे। इस सवाल और अव्यवस्था की जवाब किसी के पास नहीं है।
मोरकुंड छात्रावास में मीनू चार्ट चस्पा किया गया है। शासन की मीनू चार्ट पर सोयाबीन बड़ी और दाल भारी पड़ गई है। प्रभारी क्षेत्रसंयोजक( मंडल संयोजक) कभी भी आदिवासी छात्रावास / आश्रम का निरीक्षण नहीं करते है। इसलिए छात्रावास के बच्चों के भोजन के लिए प्रतिमाह प्रति बच्चे 15सौ रूपये दी जाती है। बच्चों को मीनू चार्ट के हिसाब से भोजन और सब्जी खिलाना चाहिए, लेकिन अधीक्षक लापरवाही करते हैं।